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Friday, June 20, 2025

क्या रामभक्त बनने वाली भाजपा राम के मित्र के वंशजों को देगी अनुसूचित जाति का आरक्षण

भाजपा की वादाखिलाफी से 17 अतिपिछड़ी जातियाँ निराश

दिल्ली 

भारत सरकार के न्याय मंत्रालय के नोटिफिकेशन के आधार पर भारत के राष्ट्रपति ने 10 अगस्त,1950 को संविधान(अनुसूचित जातियाँ) आदेश की प्रथम अधिसूचना जारी किए।संविधान के अनुच्छेद-342(1) के अंतर्गत राज्यों के राज्यपाल व राज्य प्रमुखों की सलाह से अनुसूचित जातियों की सूची जारी की गई। 7 सितंबर,1950 की मुहर से उत्तर प्रदेश की जारी सूची में 63 जातियों को अनुसूचित जाति की मान्यता प्रदान की गई।इस सूची के क्रमांक-17 पर बेलदार,47 पर खोरोट,52 पर मझवार,62 पर शिल्पकार व 63 पर तुरैहा सूचीबद्ध है।शासनादेश संख्या-1442/छ्ब्बीस-818-1957 दिनांक-22मई,1957 के अनुसार क्षेत्रीय प्रतिबंध के साथ अनुसूचित जातियों की सूची जारी की गई,जिसके अनुसार क्रमांक-18 पर बेलदार,36 पर गोंड,48 पर खोरोट,53 पर मझवार,59 पर पासी,65 पर शिल्पकार व 66 पर तुरैहा को अंकित किया गया है।भारत के संविधान में अनुसूचित जातियाँ संबंधित पारित आदेश अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ आदेश(संशोधन) अधिनियम,1976 दिनांक-27 जुलाई,1977 को प्रभावी किया गया।उक्त शासनादेश में उत्तर प्रदेश के लिए निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची 27 जुलाई,1977 से सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के लिए पुनरक्षित कर दी गयी।
उत्तर प्रदेश की 18 ओबीसी उपजातियाँ जिन्हें अनुसूचित जाति का हिस्सा बनाने की कवायद की जा रही है,वे अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध बेलदार,गोंड,खोरोट,मझवार,पासी,शिल्पकार व तुरैहा की पर्यायवाची/समनामी व वंशानुगत जाति नाम बताई जा रही हैं।अतिपिछड़ी जातियों के आरक्षण आंदोलन के सूत्रधार राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद जो 2001 से इन जातियों को परिभाषित करने की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं,ने बताया कि सेन्सस ऑफ इंडिया 1961 अपेंडिक्स टू सेन्सस मैनुअल पार्ट-1 फॉर उत्तर प्रदेश के हवाले से बताया कि 18 उपजातियाँ अनुसूचित जाति में शामिल जातियों की पर्यायवाची जातियाँ हैं। सेन्सस ऑफ इंडिया-1961 के लिस्ट-1 के पृष्ठ-67 के क्रमांक-51 पर मझवार की पर्यायवाची या वंशानुगत नाम मल्लाह,माँझी,केवट,मुजाबिर, राजगौड़, गोंड मझवार आदि,क्रमांक-57 पर पासी या तड़माली की पर्यायवाची भर,धेवा, राजपासी, त्रिसूलिया,कैथवास, पहाड़ी,कैथवास पासी,पठारी, राउत आदि,क्रमांक-51 पर शिल्पकार की पर्यायवाची कुम्हार,नाई आदि का स्पष्ट तौर पर उल्लेख है।भारत सरकार के मंत्री समूह की 5 सितम्बर,2001 की बैठक में गोंड जनजाति की पर्यायवाची गोड़िया,धुरिया,कहार, धीमर,रैकवार,बाथम,सोरहिया,राजगौड़ आदि को माना गया है।
अनुसूचित जाति में शामिल करने की संवैधानिक प्रक्रिया

कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश किसी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की पहल करता है तो वह राज्य विधानसभा, कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय से सिफारिश करता है।उक्त मंत्रालय रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया(आरजीआई/सेन्सस कमिश्नर),गृह मंत्रालय के पास परीक्षण हेतु भेजता है।आरजीआई जब प्रस्ताव से संतुष्ट हो जाता है तो अपनी टिप्पणी के साथ उक्त प्रस्ताव को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास भेज देता है।राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सहमति के बाद इसे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के पास वापस भेज देता है।इसके बाद मंत्रालय द्वारा कैबिनेट नोट तैयार कर कैबिनेट के पास प्रस्तुत करता है और कैबिनेट बिल अनुच्छेद-341 में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों(लोकसभा व राज्यसभा) में पास होने के बाद हस्ताक्षर हेतु राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है।
डेढ़ दशक से बना हुआ है मुद्दा
उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में अनुसूचित जाति में शामिल करने की माँग कर रहीं जातियों की संख्या लगभग 16 प्रतिशत है।भर,राजभर,कुम्हार,प्रजापति के अतिरिक्त शेष 14 उपजातियाँ-निषाद, मछुआ, मल्लाह,माँझी,केवट,बिन्द, धीवर, धीमर,गोड़िया,तुरहा, बाथम,रैकवार,कहार,कश्यप निषाद/मछुआरा समूह की जातियाँ हैं,जिनकी अकेले लगभग 13 प्रतिशत आबादी है।जो मुख्यरूप से पूर्वांचल के राजनीतिक समीकरण को बनाने बिगाड़ने में बड़ा खेल करती हैं।
कब कब हुआ प्रयास
सर्वप्रथम 10 मार्च,2004 को मुलायम सिंह की सरकार ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजे।केन्द्र द्वारा निर्णय न लेने पर अधिनियम-1994 का प्रयोग करते हुए मुलायम सिंह यादव ने 10 अक्टूबर,2005 को शासनादेश जारी कर दिए।लेकिन राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर व असंवैधानिक होने के कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोक लगा दिया।इसके बाद सपा सरकार ने 13 अगस्त,2006 को अधिसूचना वापस ले लिया।
2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का वादा चुनाव घोषणा पत्र में किया।कांग्रेस ने अन्य राज्यों की भाँति निषाद/मछुआ समुदाय को जातियों को एससी का दर्जा दिलाने का संकल्प लिया।मायावती ने मौखिक तौर पर घोषणा पत्र जारी करते हुए 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सुबिधा दिलाने का वादा कीं।
2007 में सत्ता परिवर्तन के बाद 13 मई,2007 को मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 30 मई की पहली ही कैबिनेट में प्रस्ताव वापस मंगाने का निर्णय लिया। 6 जून,2007 को केन्द्र सरकार से विचाराधीन प्रस्ताव को वापस मंगाकर निरस्त कर दीं।मायावती के इस निर्णय इस नाराज प्रदेश में राष्ट्रीय निषाद संघ के विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।निषाद, कश्यप,बिन्द समाज की नाराजगी को देखते हुए मायावती ने 4 मार्च,2008 को फिर से अनुसूचित जाति का कोटा बढ़ाते हुए 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अर्द्धशासकीय पत्र लिखा।
विधानसभा चुनाव-2012 के चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा व सपा ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का मुद्दा शामिल किया। 5 अक्टूबर,2012 को भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मावलंकर ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में देश भर से जुटे निषाद मछुआरा प्रतिनिधियों के बीच मछुआरा दृष्टि पत्र जारी करते हुए वादा किये की 2014 में भाजपा की सरकार बनने पर निषाद मछुआरा समुदाय की जातियों को एससी व एसटी में शामिल कर आरक्षण की विसंगतियों को दूर किया जाएगा। सपा सरकार बनने पर अखिलेश यादव ने समाज कल्याण मंत्री रामगोविन्द चौधरी की अध्यक्षता में 5 मंत्रियों की एक समिति बनाया।जिसने उक्त 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में पहले से शामिल मझवार, तुरैहा,गोंड,बेलदार,पासी या तड़माली, शिल्पकार के साथ परिभाषित करने की रिपोर्ट तैयार कर केन्द्र सरकार को प्रस्ताव स्वीकृति हेतु भेजा गया।
केन्द्र सरकार द्वारा उचित निर्णय न होने पर सपा सरकार ने 21 व 22 दिसम्बर व 31 दिसम्बर,2016 को शासनादेश व अधिसूचना अनुसूचित जाति में परिभाषित करते हुए जारी किया।डॉ. भीमराव आंबेडकर ग्रन्थालय व जनकल्याण समिति गोरखपुर द्वारा असंवैधानिक बताते हुए दायर याचिका के आधार पर 24 जनवरी,2017 को स्थगन आदेश दे दिया।राष्ट्रीय निषाद संघ ने उक्त अधिसूचना के समर्थन में इम्प्लीमेंट दाखिल किया।संघ के अधिवक्ता सुनील कुमार तिवारी द्वारा साक्ष्य सहित पक्ष रखने पर मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने स्थगन आदेश रद्द करने का अंतरिम निर्णय दिया।उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने आदेश का पालन न कर 24 जून 2019 को अखिलेश यादव सरकार की अधिसूचना जैसी ही अधिसूचना जारी कर दिया।एक बार फिर उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार से काउंटर एफिडेविट दाखिल करने का आदेश दिया।राज्य सरकार ने 5 वर्षों तक न्यायालय के समक्ष काउन्टर एफिडेविट दाखिल नहीं किया।अंत मे 31 अगस्त,2022 को राज्य सरकार के महाधिवक्ता ने हलफनामा देकर अधिसूचना को वापस कर लिया।
जब सभी दल सहमत तो क्यों नहीं मिल पा रहा आरक्षण
कांग्रेस, भाजपा,सपा,बसपा आदि सभी दल चुनाव घोषणा पत्र में 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने का वादा कर चुके हैं,केंद्र को संस्तुति भेज चुके हैं,तो आखिर इन जातियों का आरक्षण मिलने में अड़चन कहां से आ रही है।इस सम्बंध में लौटनराम निषाद ने कहा कि राजनीतिक दल इन्हें वोटबैंक रूपी दुधारू गाय समझते हैं।वर्तमान में भाजपा की डबल इंजन की बहुमत की सरकार है।यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चाह लें तो जारी बाधा दूर हो जाएगी।यह मामला सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि वह सही मन से इन्हें परिभाषित कराकर आरक्षण दिलाना चाहती है कि नहीं।
क्या आरजीआई व एससी कमीशन ही है सुपर पॉवर?
राज्य सरकार के लिए यह मुद्दा गले की हड्डी बन गया है।सरकार की तरफ से उचित प्रस्ताव की प्रक्रिया चल रही है।मिशन-2024 के लिए यह बहुत ही अहम मुद्दा बन गया है।यदि योगी सरकार चाह ले तो क्या केन्द्र में यह मुद्दा फँस सकता है?ऐसा नहीं लगता।आरजीआई व एससी कमीशन की सहमति लेनी है,जो बड़ी बात नहीं है,क्योंकि आरजीआई व एससी कमीशन ही सुपर पॉवर नहीं है।
राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने इज़ सम्बन्ध में बताया कि वे 2001 से इस मुद्दे की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।असली बाधा यह रहती है कि उत्तर प्रदेश सरकार का समाज कल्याण मंत्री,सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री,आरजीआई व एससी कमीशन का अध्यक्ष अक्सर उसी जाति के होते हैं,जो जाति इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की विरोधी है।वर्तमान में भी वही स्थिति चारों स्तरों पर हैं।अगर सरकार ठान ले तो यह बाएं हाथ का खेल है।निषाद ने टिप्पणी करते हुए कहा कि निषाद पार्टी के मुखिया ने परिवार हित में निषाद आरक्षण की लड़ाई को खत्म कर दिया।संजय निषाद पुत्र-मोह में निषाद समाज के लिए धृतराष्ट्र बन गया।निजस्वार्थ में निषाद पार्टी मुखिया ने डेढ़ दशक की लड़ाई को क्षण में खत्म कर दिया।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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