नदियों के तटों व तालाबों पर माझी समाज के लोगों का ही हक और अधिकार है
अमर नोरिया ( पत्रकार )
नरसिंहपुर
यह बात हम मांझी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी की उस घोषणा व मध्यप्रदेश शासन,राजस्व विभाग, मंत्रालय, वल्लभ भवन क्रमांक एफ 2-5/2012/सात/शाखा भोपाल दिनांक 24 मई 2012 के आदेश के आधार पर कह रहे हैं जो उन्होंने हजारों माझियों के सामने 4 फरवरी 2012 को आयोजित ” मछुआ पंचायत ” के दौरान की थी । महत्वपूर्ण बात यह है कि नदियों, नदी तटों व तालाबों से हजारों माझी समाज के लोगों की रोजी रोटी और रोजगार जुड़ा हुआ है, समाज के लोग नदी तटों पर छोटी छोटी कछार भूमि पर मौसमी सब्जी आदि लगाकर व रेत में तरबूज खरबूज लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं । गौरतलब है कि राजस्व पुस्तक परिपत्र प्रपत्र खण्ड छः क्रमांक 5 में परिपत्र क्रमांक 2308/6/67/सात/शाखा/2ए दिनांक 23.10.1984 द्वारा संशोधन किया जाकर सरिता और नदी तटों एवं तालाबों से निकली जमीन पर खेती के लिये अस्थायी पट्टे दिए जाने की व्यवस्था का प्रावधान पूर्व से ही प्रभावशील है । समाज के जो लोग रेतबाड़ी करते हैं उसमें तरबूज खरबूज लगाकर उनका जीवन यापन का जो माध्यम है उससे यह सिद्ध होता है कि नदी तटों और नदियों पर हमारा सदियों से वंशानुगत हक और अधिकार है । माझी अधिकार जनजागरण के इस प्रदेश व्यापी अभियान में हम सब सक्रिय समाजसेवी साथियों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि हम अपने अपने क्षेत्रों में इस अभियान को गांव गांव तक पहुंचायें और नदी तटों,तालाबों पर अपने कब्जे को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों सरपंच, जनपद, जिला सदस्य, विधायक, सांसदों को अपने हक और अधिकार के लिए अपनी बात उनके समक्ष रखें ,अगर वह हमारे लिए समर्थन व सहयोग नहीं करते तो हम समझ जाये कि वह हमारे साथ नहीं हैं और हमारे रोजी रोजगार के खिलाफ हैं । नदियों व नदी तटों,तालाबों पर जनजागरण अभियान के माध्यम से अधिकार दिलाकर भी हम मध्यप्रदेश में अपने समाज के लोगों की आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों में काफी कुछ बदलाव ला सकते हैं और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत कर सकते हैं । मध्यप्रदेश में चलाये जा रहे व्यापक जनजागरण अभियान और मिशन 2023- 24 में नदी तटों व गांवों में रहने वाले लोगों जिनका मूलतः मत्स्याखेट व कमलगट्टा,सिंघाड़ा आदि से रोजी रोजगार लगा है उनके सम्बन्ध में जानकारी जुटाकर शासन प्रशासन और क्षेत्रीय विधायकों/ सांसदों को भी अवगत करायें व अन्य शासकीय योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिला तो उसके कारणों का पता लगाकर उनके साथ किये जा रहे भेदभावपूर्ण व्यवहार के प्रति उन्हें जागरूक करें ।