देश का इकलौता मंदिर जहां कल्कि अवतार में पूजे जाते भगवान गणेश:लगाई जाती अर्जी घोड़े पर सवार गजानन.
कल्कि गणेश करते है, घोड़े की सवारी, पाताल तक समाया है शरीर
वीर भूमि हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार जब जब धरती पर पाप बढ़ा है। तब तब भगवान विष्णु किसी ना किसी रूप में धरती पर पापियों का विनाश करने के लिए प्रकट हुए हैं। वामन अवतार, नृसिंह अवतार, मत्स्य अवतार, रामावतार, कृष्ण अवतार ये सभी इस बात के प्रमाण हैं।
वही जबलपुर में करीब 50 फुट की ऊंचाई पर शिला स्वरूप भगवान गजानन विराजमान हैं। यहां भगवान का कल्कि स्वरूप है, जो चूहा की सवारी नहीं बल्कि घोड़े पर होते हैं। विशालकाय सूंड धरती के बाहर है और शेष धड़ प्रतीकात्मक रूप से बाहर है। बाकी शरीर पाताल यानि कई फीट नीचे तक बताया जाता है। भगवान को सिंदूर चढ़ाने की रस्में में पूरी शिला को सिंदूर से रंगा जाता है। झंडा और वस्त्र अर्पित करने के साथ अनुष्ठान किया जाता है। मंदिर का क्षेत्र डेढ़ एकड़ में है।
प्राकृतिक रूप से शिला स्वरूप प्रकट हुए भगवान सुप्तेश्वर गणेश की उपासना से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। मंदिर से जुड़े लोगों ने बताया कि जब रतननगर की पहाडिय़ों को अवैध तरीके से तोड़ा जा रहा था, तब एक महिला भक्त को भगवान के दर्शन हुए और उन्होंने पूजन अर्चन किया। मान्यता पूरी होने के कारण भक्तों की संख्या बढ़ती गई। जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वे भगवान को सिंदूर चढ़ाते हैं। हर तीन माह में सिंदूर चढ़ाने का अवसर आता है, फिलहाल दो साल से अधिक समय के लिए सिंदूर चढ़ाने वाली भक्तों की प्रतीक्षा सूची है। सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में कोई गुम्बद या दीवार नहीं है। प्रकृति स्वरूप उत्पन्न हुए भगवान गणेश मंदिर में दर्शन करने वालों को प्राकृतिक पहाड़ी और हरियाली में भक्ति का अवसर प्राप्त होता है। जिस स्वरूप में भगवान प्रकट हुए, उसी स्वरूप का पूजन किया जाता है।