एक ओर देशभर में “स्वच्छता पखवाड़ा” के अंतर्गत साफ-सफाई को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जब ज़मीनी हकीकत की बात आती है, तो तस्वीरें कुछ और ही बयां करती हैं।
मझौली जबलपुर
मझौली नगर परिषद में करोड़ों रुपये की लागत से खरीदे गए डस्टबिन अचानक मार्केट एरिया से *’गायब’* हो गए हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के तहत नगर परिषद को विशेष बजट जारी हुआ था, जिसमें शहर के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों — विशेषकर बाजार क्षेत्रों — में दर्जनों डस्टबिन लगाए गए थे। लेकिन हालात ऐसे हैं कि आज वही डस्टबिन नदारद हैं। बाजार में पैदल चलने वालों से लेकर दुकानदारों तक, सभी इस लापरवाही से परेशान हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह कोई पहली बार नहीं है। एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “पिछली बार भी डस्टबिन कुछ ही दिनों में नज़र नहीं आए थे। अब फिर वही हाल है। कोई पूछने वाला नहीं है।”
बड़ा सवाल यह है:कि
* आखिर करोड़ों की लागत से आए ये डस्टबिन कहां गए?
* क्या नगर परिषद की निगरानी व्यवस्था इतनी कमजोर है?
* क्या यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का मामला नहीं बनता?
नगर परिषद के अधिकारियों से जब इस संबंध में संपर्क किया गया, तो कोई ठोस जवाब नहीं मिला। अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालते नजर आए।
स्वच्छता अभियान की असलियत उजागर
यह स्थिति न सिर्फ नगर परिषद की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि पूरे स्वच्छ भारत मिशन की साख पर भी धब्बा लगाती है।
जनता ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच हो और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
—रिपोर्ट: सुंदर लाल बर्मन
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