8वीं की पढ़ाई छोड़कर चले गए थे परमहंसी आश्रम, विदेशी भाषा का ज्ञान हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत व गुजराती में पारंगत
पंकज पाराशर छतरपुर
विदेशी भाषाओं में पारंगत मध्य प्रदेश की भूमि नरसिंहपुर के ग्राम बरगी (करकबेल- गोटेगांव) में जन्मे शारदा द्वारकापीठ के नए शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती चार भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती भाषा में निपुण हैं। कंप्यूटर में भी दक्ष हैं। बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि स्वामी सदानंदजी ने 12 साल की उम्र में आठवीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ 1970 में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का सानिध्य प्राप्त कर लिया था।
गुरू के सान्निध्य में कठिन जप-तप, शास्त्रों का अध्ययन कर उन्होंने 62 साल की उम्र में सनातन धर्म के सर्वोेच्च गुरू शंकराचार्य का पद हासिल किया। सदानंद सरस्वती, हिंदी, संस्कृत, गुजराती व अंग्रेजी भाषा में अब तक करीब एक दर्जन किताबें लिख व अनुवादित कर चुके हैं, जिनका संग्रह परमहंसी गंगा आश्रम में है।
*स्कूल के झगड़े ने बदला जीवन*
1958 में जन्मे सदानंद सरस्वती के बचपन का नाम रमेश अवस्थी है। इनके चचेरे भाई पं. नरेंद्र अवस्थी के अनुसार ये सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। इनके छह बड़े भाई-बहन हैं। पिता पं. विद्याधर अवस्थी प्रसिद्ध वैद्य व किसान व माता मानकुंवरबाई गृहिणी थीं।
रमेश अपने गांव बरगी से करीब 20 किमी दूर नरसिंहपुर के स्टेशनगंज स्थित सरकारी स्कूल में साइकिल से पढ़ने आते थे। 8वीं कक्षा में पहुंचे तो एक दिन उनका सहपाठी से मामूली झगड़ा हो गया। घर तक बात न पहुंच जाए और माता-पिता की डांट न पड़े, ये सोचते-सोचते साइकिल से परमहंसी गंगा आश्रम पहुंच गए।