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Saturday, June 21, 2025

मझौली की संरक्षित बावड़ी का अस्तित्व संकट में

 प्राचीन धरोहरों में शामिल मझौली की बावड़ी अब देख-रेख के अभाव में जर्जर होते जा रही है।

मझौली जबलपुर

भले ही इसे सरकार ने संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया है, लेकिन इसे सहेजने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण बावड़ी की दीवारें जर्जर होने लगी है तो यहां दीवारों पर की गई नक्काशी क्षतिग्रस्त होने लगी है।

जिले की प्राचीन धरोहरों में शामिल बिष्णु बाराह मंदिर श्री राम जानकी मंदिर बस स्टैंड मेने मार्केट की बावड़ी अब देख-रेख के अभाव में जर्जर होते जा रही है

भले ही इसे सरकार ने संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया है, लेकिन इसे सहेजने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण बावड़ी की दीवारें जर्जर होने लगी है तो यहां दीवारों पर की गई नक्काशी क्षतिग्रस्त होने लगी है। इस बावड़ी का निर्माण 17वीं-18वीं शताब्दी में गोंड राजाओं के द्वारा किया गया था।

: जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी की दूरी पर स्थित मझौली मैं पानी का श्रोत रहीं हैं यह बावड़ी ।

यह बावड़ी संरक्षित स्मारक के रूप में जानी-पहचानी जा रही है। बावजूद इसके शासन द्वारा इसे सहेजने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। मौजूदा समय में यह बावड़ी काफी जर्जर और क्षतिग्रस्त होने लगी है। बावड़ी में जगह-जगह घास उग आई है। यहां का पानी भी दूषित होने लगा है। इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान द्वारा इसे संरक्षित करने के लिए प्रयास किए गए लेकिन राशि के अभाव में वे सफल नहीं हो पाए। जबकि इस बावड़ी को देखने के लिए प्रतिवर्ष यहां हजारों लोग आते है।

ये है इतिहास

इस बावड़ी का निर्माण मझौली नगर के आसपास ग्रामीणो में प्राचीन किला में जाने के लिए किया गया था। इसका निर्माण गर्मी के दिनों में सैनिकों के छिपने, पेयजल, स्नान और आराम करने के लिए इस बावड़ी का निर्माण किया था। जो गोंड काल के बाद मराठा शासक और भोंसले साम्राज्य में भी इसका उपयोग होते रहा। इस कारण इस बावड़ी में गोंड कालीन, मराठा शासक और भोंसले साम्राज्य की कलाकृतियां भी देखने मिलती है। बताया जाता है कि इस बावड़ी से अंदर ही अंदर सुरंग के माध्यम से रानी दुर्गावती किला संग्राम जाने के लिए रास्ता बना हुआ था जो फिलहाल बंद है।

बावजूद इसके पुरातत्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित किए जाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है

17वीं-18वीं शदाब्दी में हुआ था निर्माण

इस बावड़ी का निर्माण 17 वीं-18 वी शताब्दी में बड़ी-बड़ी चट्टानों को कांट कर, तराश कर व अलंकृत स्तम्भों से किया गया है। यह बावड़ी दो मंजिला है। प्रथम तल पर दस स्तंभ और उसके नीचे आठ अलंकृत स्तंभधारित बरामदे और कक्ष का निर्माण किया गया है। बावड़ी के प्रवेश द्वार पर दो चतुर्भुजी शिव और 16 वीं शताब्दी की श्रीफल लिए अंबिका की प्रतिमाओं की नक्काशी की गई है।

जुर्माने का प्रावधान

पुरातत्व विभाग ने इस बावड़ी को संरक्षित स्मारक घोषित करवाया है। विभाग की इस पहल पर शासन ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर उसे क्षति पहुंचाने पर 10 हजार रुपए जुर्माना नियत किया गया है।

फिर भी सरकार इसकी साफ-सफाई या उसे संरक्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही है।

बावड़ी की नक्काशी भी होने लगी क्षतिग्रस्त

बावाड़ी की दीवारों में 17वीं-18वीं शताब्दी के मूर्तिकारों ने पत्थरों में नक्काशी कर अनेक कलाकृतियां बनाई है। जो मौजूदा समय में देख-रेख के अभाव में क्षतिग्रस्त होने लगी है। यदि इनके क्षतिग्रस्त होने का सिलसिला ऐसे ही अनवरत रूप से जारी रहा तो कुछ समय बाद यहां की नक्काशी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि बावड़ी सहित यहां के दीवारों पर की गई नक्काशी, कृलाकृतियों को देखने के लिए प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। लेकिन शासन की लापरवाही व उदासीनता के चलते न तो यह बावड़ी संरक्षित हो पा रही है और न ही यहां की दीवारों पर की गई नक्काशी।

क्षतिग्रस्त हो रहीं बावड़ी की दीवारें

बावड़ी को संरक्षित किए जाने के लिए शासन द्वारा कोई राशि प्रदान नहीं की जा रही है। इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान द्वारा इसे सहेजने की दिशा में प्रयास तो किया जा रहा है। लेकिन राशि के अभाव में विभाग कुछ नहीं कर पा रहा है। जिसके कारण बावड़ी की दीवारे अब धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होकर खराब होने लगी है। हालांकि, वर्ष 2006 में तत्कालीन विधायक अजय विश्नोई ने इसके लिए प्रयास किया था।

भूमि पूजन जिर्णोद्धार कार्यक्रम वार्ड क्रमांक 13 में बनी बावड़ी का 2 फरवरी 2006 को वर्तमान विधायक पूर्व कैबिनेट नगरीय प्रशासन मंत्री जयंत मलैया और राज्य सभा सांसद के द्वारा किया गया था

जिनके प्रयासों से बावड़ी के चारों ओर फेसिंग कर दी गई है। इसके अलावा बावड़ी को संरक्षित किए जाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया है। जिसके कारण यह बावड़ी अब धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगी है।

इनका कहना है…

बावड़ी एक प्राचीनतम धरोहर है। इसे संरक्षित करने के लिए शासन द्वारा प्रयास होना चाहिए। इसके लिए नगर में ट्रस्ट का गठन भी किया गया है।

प्रिस जैन, स्थानीय निवासी

नगर परिषद द्वारा इस धरोहर को पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है। इसकी देखरेख पुरातत्व विभाग ही करता है।

देखरेख के अभाव में यह विरासत जर्जर होने लगी है।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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