खोदा पहाड़ और निकली चुहिया :
सतना
, (साहब सलाम विन्ध्य)। जी हां ! कृषि विभाग में 2 माह से चल रही 90 लाख के हस्त/बैल चलित कृषि उपकरणों के गबन मामले में जांच टीम ने शासन को 15 पृष्ठ की आधी अधूरी रिपोर्ट भेज दी। रिपोर्ट के विस्तृत अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि उक्त मामले में एक भी पैसे का भुगतान नहीं किया गया और न ही निर्देशों के उल्लंघन का कहीं ज़िक्र मिला। लेकिन विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक शिकायतकर्ताओं के दबाव में पूर्व से द्वेष भावना रखने वाले रीवा के उप संचालक कृषि यूपी बागरी ने पुत्र मोह में सतना के प्रभारी उप संचालक को दोषी लिखवाया, जिसकी चर्चा विभाग के लोग पूरे विन्ध्य में खुलकर कर रहे हैं। इन्हीं सूत्रों की मानें तो 1 अप्रैल 22 को सतना के उप संचालक कार्यलय में पदस्थ कृषि विकास अधिकारी प्रहलाद बागरी जो सिंचाई यंत्रों की शाखा का निर्वहन करते थे और 10 हजार रुपए के घूंस का लिफाफा लेते हुए यंत्र विक्रेता की दुकान में लगे सीसीटीवी में कैद हो गए थे। इस वीडियो के वायरल होने पर संचालक कृषि भोपाल द्वारा उन्हें निलंबित भी कर दिया गया था। कहते हैं कि अपने पुत्र की उक्त घटना का दोष रीवा के उपसंचालक कृषि यूपी बागरी सतना के उप संचालक केसी अहिरवारके सिर बांध रहे हैं। यहां पर देखने वाली बात यह है कि अधिकांश शिकायतकर्ता भी बागरी हैं और जांच का अधिकार भी बागरी को ही दिया गया है। सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में जांच निष्पक्ष कैसे हो सकती है ? जो भी हो, फिलहाल नाम लीक न करने की शर्त पर जांच टीम के एक सदस्य ने बताया कि जब 20 दिसम्बर की रात्रि 12:30 बजे उक्त रिपोर्ट बन रही थी, तब रीवा के कृषि उपसंचालक यूपी बागरी चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि अगर केसी अहिरवार को दोषी नहीं गया तो उनका लड़का उन्हें घर में नहीं घुसने देगा। इस दौरान उनके पुत्र कृषि विकास अधिकारी प्रहलाद बागरी का हर मिनिट फोन आ रहा था और वो यह भी कह रहे थे कि दोषी नहीं बनाया गया तो वह इस मामले में शिकायतकर्ताओं को क्या जवाव देंगे। ध्यान देने वाली बात यह है कि उक्त द्वेषपूर्ण रिपोर्ट पर कमेटी के 2 सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर करने से भी साफ इंकार कर दिया था, जिसमे से एक अधिकारी से बाद में दबाव बनाकर स्कैन कॉपी भेजकर हस्ताक्षर करवा लिए गए जो रिपोर्ट में स्पष्ट देखे भी जा सकते है। जबकि, दूसरे अधिकारी ने कथित झूठी रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर करने से स्पष्ट मना कर दिया था। ज्ञातव्य हो कि यदि मामला इतना संजीदा है, तो वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले की मजिस्ट्रियल जांच करवाई जानी चाहिए। यदि मामले की निष्पक्ष मजिस्ट्रियल जांच हुई तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।