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Friday, June 20, 2025

संस्कृति विभाग के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा शंकर व्याख्यान-माला के 46वें पुष्प का आयोजन किया गया।

ईशावास्यमिदं सर्वम्’ विषय पर समदर्शन आश्रम, गांधीनगर की आचार्या स्वामिनी समानंदा सरस्वती का व्याख्यान हुआ

उपनिषद् का अर्थ है गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मज्ञान का श्रवण, मनन और निदिध्यासन

स्वामिनी जी ने बताया कि ईशावास्योपनिषद केवल 18 मंत्रों का है और इसमें सम्पूर्ण वेदांत का सार है। स्वामिनी जी ने बताया कि उपनिषद् का अर्थ होता है ब्रह्मविद्या या उसका प्रतिपादन करने वाला ग्रंथ। श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के समीप बैठ कर उनके मुख से ब्रह्मज्ञान का श्रवण करना तथा उसका अनुशीलन करना उपनिषद का तात्पर्य है। यह ब्रह्मज्ञान श्रवण, मनन और निदिध्यासन से संभव होता है।

ईश्वर ही जगत का अभिन्न निमित्त, उपादान कारण और अधिष्ठान है

स्वामिनी जी ने बताया कि संपूर्ण जगत ब्रह्म द्वारा आच्छादनीय है। इसके दो सिद्धांत बताए गए हैं। पहला है-कार्य-कारण संबंध। स्वामिनी जी ने बताया कि किसी भी वस्तु के दो कारण होते हैं। जिस पदार्थ से वस्तु बनती है उसको उपादान कारण और जो बनाने वाला होता है उसको निमित्त कारण कहा जाता है। ईश्वर जगत का निमित्त कारण भी है और उपादान कारण भी। उपादान कारण कार्य अथवा वस्तु से भिन्न नहीं होता है, जिस प्रकार मिट्टी घड़े से भिन्न नहीं है। उपादान कारण से ही उत्पत्ति, स्थिति और लय होता है।

दूसरा सिद्धांत बताते हुए स्वामिनी जी ने कहा कि जगत में जो कुछ भी पदार्थ है उसके पाँच लक्षण हैं – नाम, रूप, अस्ति, भाति तथा प्रियता। प्रत्येक वस्तु का कुछ न कुछ नाम और रूप होता है, जिससे हम उसको जानते हैं और अपनी आँखों से देखते हैं। साथ ही हर वस्तु की अस्ति यानी अस्तित्व या सत्ता होती है। भाति यानी वह हमें भासता है और तीसरा प्रियता यानी वह किसी को प्रिय होता है। नाम-रूप जगत के लक्षण हैं, जिनका हमें निषेध करना है तथा अस्ति-भाति-प्रियता ब्रह्म स्वरूप हैं। ब्रह्म सत, चित और आनंद स्वरूप है। अतः जगत में जो कुछ है उसमें ब्रह्म ही अधिष्ठान रूप से स्थित है और जगत तथा जीव को साक्षी चैतन्य रूप मानने से हमारी दृष्टि जगत के प्रति ईश्वरमयी हो जाती है। इसीलिए हिंदू संस्कृति नदी, पर्वत, वृक्ष, वन, बादल आदि सर्वत्र ईश्वर का ही दर्शन करती है।

व्याख्यान का सीधा प्रसारण न्यास के फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर किया गया। चिन्मय मिशन, आर्ष विद्या मंदिर राजकोट आदि शंकर ब्रह्म विद्या प्रतिष्ठान उत्तरकाशी, मानव प्रबोधन प्रन्यास बीकानेर, हिन्दू धर्म आचार्य सभा, मनन आश्रम भरूच, मध्यप्रदेश जन-अभियान परिषद आदि संस्थाएँ भी सहयोगी रही। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यान-माला में वेदान्त विषयक व्याख्यान किए जाते हैं।

स्वामिनी समानंदा सरस्वती का जन्म पोरबंदर, गुजरात में हुआ है। युवावस्था में ही वेदान्त के प्रति रुचि होने से अर्थशास्त्र में स्नातक करने के बाद पूज्य स्वामी ब्रह्मात्मानंदजी के सान्निध्य में तीन वर्ष तक वेदान्त का अध्ययन किया। छः वर्ष तक ऋषिकेश स्थित दयानंद आश्रम में पूज्य स्वामी विशारदानंद जी के मार्गदर्शन में प्रस्थानत्रयी के शांकरभाष्य के साथ संस्कृत व्याकरण, मीमांसा, न्यायदर्शन और विभिन्न प्रकरण ग्रंथों का अध्ययन किया। स्वामिनी जी ने स्वामी ब्रह्मात्मानंदजी से ब्रह्मचर्य दीक्षा और आर्ष विद्या गुरुकुलम् के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी से संन्यास दीक्षा ग्रहण की।

स्वामिनी जी की विद्वता को सम्मानित करते हुए श्रीसोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2013 में मानद विद्या वाचस्पति (डी.लिट.) की उपाधि प्रदान की गई। वर्तमान में गांधीनगर के समदर्शन आश्रम की संस्थापिका और आचार्या हैं। गत 25 वर्ष से नियमित स्वाध्याय, शिविरों और ज्ञानयज्ञों से समाज में अद्वैत वेदांत का प्रचार कर रही हैं।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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