पहला मौका-21 अक्टूबर 2001 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रथम बार सिहोरा को जिला घोषित किया
सिहोरा
इसके बाद 11 जुलाई 2003 को सिहोरा जिला का राजपत्र जारी हुआ
फिर 01 अक्टूबर 2003 को सिहोरा जिला को कैबिनेट की मंजूरी मिली।
अक्टूबर 2001 से अक्टूबर 2003 तक कुल दो वर्ष
यहाँ हमने पहला मौका खोया,तत्कालीन विधायक नित्यनिरंजन खम्परिया और हम सभी यदि जोर लगाते तो इतनी देर न लगती।
दूसरा मौका–
05 जून 2004 को तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती सिहोरा आई और बोली दिलीप(तत्कालीन सिहोरा विधायक) मैं डिंडोरी के सरकारी जिला अस्पताल गई कोई सुविधा न थी,मैं नही चाहती सिहोरा जिला में ऐसा हो।मैं पहले सिहोरा को पुष्ट बनाउंगी फिर जिला बनाउंगी।देवउठनी एकादशी(नवंबर 2004)को सिहोरा जिला बन जाएगा।
यहाँ हमने हाथ आए दूसरे मौके को जाने दिया। उमा भारती जी के ऐसा कहने पर तत्कालीन विधायक दिलीप दुबे जी और हम सिहोरा वासियों को अड़ जाना था कि सिहोरा जिला बना दो अस्पताल तो बाद में अच्छा हो ही जाएगा ।
शतीसरा मौका-
नवंबर 2004 में देवउठनी ग्यारस आई पर मुख्यमंत्री बदल चुका था पर सरकार भाजपा की थी,सिहोरा विधायक भी भाजपा का था।
हमने यहाँ तीसरा मौका जाने दिया हमने ज्ञानी बन तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को भाजपा के मुख्यमंत्री की जगह उमा विरोधी मुख्यमंत्री ज्यादा माना और देवउठनी ग्यारस नवंबर 2004 को सिहोरा जिला न बनने पर कोई आवाज न उठाई।
चौथा मौका–
उमा भारती भाजपा की मुख्यमंत्री थी उन्होंने स्वयं सिहोरा को जिला बनाने की निश्चित तिथि सहित घोषणा की थी।
हमने यहाँ चौथा और सिहोरा के लिए सबसे घातक चौथा मौका हाथों से जाने दिया ।सिहोरा भाजपा और उसको सत्ता देने वाले हम सिहोरावासी 20 वर्षो से शिवराज सरकार को यह अवगत न करा सके कि सिहोरा जिला मुद्दा किसी पार्टी का नही,सिहोरा की आम जनता के सम्मान का मुद्दा है।
महत्वपूर्ण चार मौके खोने के बाद भी न जागे तो आपके जीवित होने पर भी संदेह है।
सिहोरा की भाषा मे कहें तो “धरो घुटना कैसे नई होय काम”
एक मौका फिर सामने है,जागो…जागो
लक्ष्य जिला सिहोरा आंदोलन समिति,सिहोरा”