सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को ‘प्रश्नवाचक’ बताकर किया अस्वीकार
मझौली (जबलपुर)
नगर परिषद मझौली द्वारा वर्ष 2020 से 2025 तक वेंडर / सप्लायर / ठेकेदार के रूप में पंजीकृत की गई फर्मों और उनके पदस्थ पार्षदों या कर्मचारियों से संभावित पारिवारिक रिश्तों को लेकर पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। जानकारी के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किए गए, लेकिन कार्यालय द्वारा इसे “प्रश्नवाचक” कहकर अस्वीकार कर दिया गया।
वार्ड क्रमांक 12 निवासी श्री बारे लाल वर्मन द्वारा नगर परिषद मझौली को दिये गए आरटीआई आवेदन में यह जानना चाहा गया था कि बीते पाँच वर्षों में किन फर्मों को वेंडर के रूप में पंजीकृत किया गया और इनमें से कितनों का सम्बन्ध निकाय के पार्षदों या कर्मचारियों से है। साथ ही यह भी पूछा गया कि क्या हितों के टकराव को रोकने के लिए कोई घोषणा-पत्र जमा कराया गया है या नहीं।
परंतु नगर परिषद ने 31 जुलाई 2025 को पत्र क्रमांक 1012/सू.का अधि/न.परि./25 जारी कर केवल यह कहकर आवेदन को अमान्य घोषित कर दिया कि सवाल प्रश्नवाचक हैं।
क्या कहता है कानून…..?
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(f) के अनुसार यदि वांछित सूचना विभागीय अभिलेखों के रूप में मौजूद है, तो नागरिक को उसकी प्रतिलिपि देने से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही “जनहित” से जुड़ी जानकारी को छुपाना या टालना सीधा पारदर्शिता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
फर्मों को अनुचित लाभ….?
सूत्रों के अनुसार नगर परिषद से संबद्ध कुछ वेंडरों के निकाय के जनप्रतिनिधियों या कर्मचारियों से रिश्तेदारी की आशंका है, जिससे ठेकों में *हितों का टकराव (Conflict of Interest)* का मामला उठ सकता है। यदि वेंडर पंजीकरण नियमों की अनदेखी हुई है तो यह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का गंभीर संकेत है।
अब अपील में मामला
श्री वर्मन ने जानकारी न मिलने पर अब प्रथम अपीलीय अधिकारी — उपसंचालक नगरीय प्रशासन, जबलपुर को प्रथम अपील प्रस्तुत की है। यदि वहाँ से भी जवाब नहीं मिला, तो यह मामला राज्य सूचना आयोग की चौखट तक पहुंच सकता है।
जनता पूछ रही सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर सब कुछ पारदर्शी है तो सूचना देने में हीला-हवाली क्यों? नगर परिषद के वेंडर चयन और भुगतान में अगर गड़बड़ियाँ नहीं हैं, तो उन्हें सार्वजनिक करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
संभावित है कि आने वाले दिनों में यह मामला बड़ा प्रशासनिक और जनसामाजिक मुद्दा बन सकता है।




