ओबीसी,एससी, एसटी के रिक्त पदों को भरने में केंद्र सरकार दिखा रही उदासीनता
लखनऊ
ओबीसी प्रधानमंत्री की सरकार में भी ओबीसी,एससी, एसटी के खाली पदों को भरने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।केन्द्र सरकार की सरकारी नौकरियों में निर्धारित पदों में ओबीसी,एससी, एसटी के लिए आरक्षित पदों का आधा से अधिक पद रिक्त है।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व कांग्रेस नेता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि केन्द्र सरकार जानबूझकर आरक्षित वर्ग का उसके हिस्से के रिक्त पदों को भरने में उदासीनता बरत रही है।उन्होंने केन्द्र सरकार से ओबीसी,एससी, एसटी के रिक्त पदों को भरने के लिए बैकलॉग भर्ती शुरू करने की माँग किया है।केन्द्र सरकार में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत,एससी के लिए 15 प्रतिशत व एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण कोटा निर्धारित होने के बाद भी इन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है।ओबीसी के वोटबैंक से बनी भाजपा की सरकार ओबीसी के साथ भी न्याय न कर बंच ऑफ थॉट्स एवं वी ऑर अवर नेशनलहुड डिफाइंड की नीतियों पर चल रही है।
निषाद ने कहा कि ओबीसी,एससी, एसटी के लाखों पद रिक्त पदों को भरने में उदासीनता बरत रही है।केन्द्र सरकार के ग्रुप-क में ओबीसी के 53.2%,ख में 60.7% व ग्रुप-ग में 53.3% पद रिक्त हैं।एससी के ग्रुप-क में 48.5%,ग्रुप-ख में 60.0% व ग्रुप-ग में 45.8% और एसटी के ग्रुप-क में 53.2%,ग्रुप-ख में 60.7% व ग्रुप-ग में 53.3% पद रिक्त हैं।क्या यही सबका साथ सबका विकास व सबका विश्वास के नारे की सच्चाई है? भाजपा सरकार वादा के बाद भी ओबीसी की जनगणना कराने से पीछे हटकर वादाखिलाफी किया है।एक पिछड़ी जाति के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में भी वंचित वर्ग के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है।
निषाद ने राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार के आरक्षण विस्तार संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर न कर संघीय मानसिकता का परिचय दे रही हैं।उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल संघ व भाजपा के रिमोट कंट्रोल से संचालित हो रही हैं।राज्यपाल का यह कहना कि हमने केवल एसटी के आरक्षण विस्तार के लिए कहा था,तो ओबीसी,एससी का संशोधन क्यों किया गया,बेहद अफसोस जनक व तुच्छ जातिवाद का परिचायक है। केंद्र सरकार ने आख़िरकार अब लोकसभा में ये मान लिया कि सवर्णों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने के लिए किसी तरह का कोई सर्वे नहीं कराया गया था। सरकार को न तो ईडब्ल्यूएस की संख्या मालूम है और न ही उनकी ग़रीबी के बारे में कोई आँकड़ा उसके पास है। सवर्ण जातियों के बिना किसी आँकड़े व आयोग या सर्वे के 10% कोटा देने का कोई आधार नहीं है।आखिर सवर्ण जातियों को कोटा देने के लिए केन्द्र सरकार ने कोई आयोग या समिति गठित क्यों नहीं किया,जनसंख्या का आँकड़ा इकट्ठा क्यों नहीं किया?आखिर ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर ही न्यायपालिका अड़ंगेबाजी क्यों करती है?