जान जोखिम में डालते किसान और खामोश प्रशासन:धर्मेश चतुर्वेदी
सतना मध्यप्रदेश
हाई टेंशन लाइन के खेतों में होकर बिछाए जाने के बाद से निर्धारित मुआवजा के लिए आज भी दशकों से भटक रहे किसान हैं। किसान चौराहे में या प्रशासन से सशत्र मुकाबला तो कर नहीं सकता इसलिए वह मुआवजे में हो रही कोताही से हताश होकर खुद की जान जोखिम में डालने के लिए बार-बार मजबूर हो जाते हैं। यह असंवेदनशीलता की हद है कि इतने के बावजूद उन पर प्रशासन उल्टे कोतवाल बन सख्ती दिखाने से बाज़ नहीं आता।
17 नवंबर को ठंड में अतरबेदिया के किसानो का धैर्य टूटा तो पुनः उन्होंने अपना गुस्सा टावर में चढ़कर न सिर्फ जान जोखिम में डाली बल्कि अपनी असहाय स्थिति को इस माध्यम से जताने की कोशिश की।
क्या कोई हादसा ही प्रशासन की नींद उठाएगा या संवेदनशील सरकारें खुद से मामले की पड़ताल कर न्याय का मार्ग तय करेंगी।
सतना कलेक्टर अनुराग वर्मा ने जब से जिले की कमान संभाली है तब से जनहित में प्रशासनिक दायित्वों के निर्वाहन में स्वविकेकीय निर्णय को लेकर अपनी प्रशासनिक संवेदनशीलता का परिचय देते रहे हैं।
एक ऐसे ही मामले में जिसमे जिले के किसानों ने पॉवर ग्रिड से उनके खेतों से टॉवर लगाने और पावर लाइन के तार बिछाने के एवज में मुआवजे की मांग की थी जिसकी उपेक्षा बनी रही। दरअसल गाइड लाइन के मुताबिक जिस मुआवजा के किसान हकदार थे उसमे पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन मनमानी पूर्वक मुआवजे वितरित किये थे। इससे किसानों में रोष व्याप्त था, लेकिन किसानों में जानकारी का अभाव और उनके असंगठित होने और पावर ग्रिड प्रबंधन प्रशासनिक बल बूते किसानों की आवाज़ को दबाने में सफल होता रहा। यद्यपि इस दौरान छोटे-छोटे से प्रदर्शन भी हुए मग़र इन सब से जब प्रशासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी- तब किसानों ने संगठित होकर लगभग एक वर्ष तक वाजिब मुआवजे के लिये लंबी लड़ाई लड़ी। तत्कालीन ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल व कलेक्टर संतोष मिश्रा के समक्ष किसानों ने अपना पक्ष रखकर इस मसले में सहानुभूति पूर्वक विचार कर न्याय की मांग की गई। तब हुआ ये, कि कलेक्टर संतोष मिश्रा द्वारा 1 जुलाई 2015 को किसानों व पावर के अधिकारियों व सांसद प्रतिनिधि उनके अनुज उमेश प्रताप सिंह लाला की उपस्थिति में सर्वसम्मति से किसानों के पक्ष में यह निर्णय लिया कि प्रति टॉवर 12 लाख रुपये एवं 3 हज़ार रुपये प्रति मीटर रनिंग के हिसाब से मुआवजे का भुगतान किया जाये। हालांकि इससे कुछ किसानों को इन दरों पर भुगतान हुआ भी लेकिन समय के अनुसार अधिकांश किसानों के साथ पुनः मनमानी की जाने लगी। फलस्वरूप पुनः किसान अपने हित के लिए -आंदोलन हेतु विवश हुए जिसमें किसानों ने टॉवर पर चढ़कर प्रदर्शन किए जिसे पॉवर ग्रिड की शह पर प्रशासन द्वारा कुचल दिया गया। इसी बीच कुछ किसानों द्वारा जिला दंडाधिकारी के न्यायालय में दावा दायर कर न्याय की गुहार लगाई गई। जिस पर 2 नवंबर 2021 को तत्कालीन जिला कलेक्टर द्वारा एक निर्णय पारित कर अनुविभागीय अधिकारी उचेहरा को एक माह के भीतर निर्धारित दरों पर 7 वर्षों की ब्याज सहित मुआवजे के भुगतान करने का आदेश दिया गया । फिर इस निर्णय पर धूल की परतें जमने लगीं थी।
क्योंकि एस डी एम ने अपनी संवेदनहीनता के चलते कोई कार्यवाही नहीं की।
लेकिन अब जबकि जिले को अरसे बाद एक ऐसा प्रशासनिक अधिकारी अनुराग वर्मा के रूप में मिला जिनकी संवेदनशीलता की मिसाल कई मौकों पर देखने को मिलती रहती है।
अब जिला कलेक्टर सतना अनुराग वर्मा से उम्मीद है कि इस मामले में संज्ञान लेते हुए गरीब, बेबस, आदिवासी व किसानों के पक्ष में वर्षों से लंबित न्याय को व्यवहार रूप देते हुए शीघ्र मिसाल कायम करेंगे।