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Saturday, June 21, 2025

अतिपिछड़ी जतियाँ राजनीतिक दलों के लिए महज वोटबैंक

मुलायम अखिलेश, योगी यूपी में हर बार क्यों फेल हो जाता है अतिपिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने का दांव,,,,,?

लखनऊ।

उत्तर प्रदेश में 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने के अरमानों पर हाई कोर्ट ने पानी फेर दिया है। पिछले दो दशक से सूबे में कुछ अतिपिछड़ी जातियां एससी में शामिल होने के लिए मशक्कत कर रही हैं, लेकिन अनुसूचित जाति में शामिल होने की प्रक्रिया और अदालत के चक्कर में हर बार दांव उल्टा पड़ रहा है।एससी आरक्षण की असल जंग
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 31 अगस्त को ओबीसी की 18 जातियों को अनुसूचित जाति की कैटेगरी में शामिल करने वाले नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। इस तरह से उत्तर प्रदेश की डेढ़ दर्जन पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति आरक्षण पाने के मंसूबों पर एक बार फिर पानी फिर गया है।पिछले दो दशकों से इन ओबीसी जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने की कोशिशें की जा रही हैं, क्योंकि ये पिछड़ों में भी सबसे ज्यादा पिछड़े हैं।
मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ की सरकार तक ने कवायद कर ली, लेकिन हर बार अदालत के दहलीज पर जाकर दांव फेल हो जाता है? बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 54 फीसदी आबादी पिछड़ा वर्ग की है और उनके लिए 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा। प्रदेश की ओबीसी सूची में 79 उपजातियां शामिल हैं।सूबे में ऐसी ही अनुसूचित जाति की आबादी करीब 21 फीसदी है और उसे 21 फीसदी आरक्षण मिल रहा। ऐसे में ओबीसी में कुछ जातियां ऐसी हैं, जो दूसरे राज्यों में अनुसूचित जाति की श्रेणी में आती हैं।जिन 18 ओबीसी की जातियों को एससी कटेगरी में डालने की माँग है,उनकी ही समकक्षी व समनामी जातियाँ राष्ट्रपति द्वारा जारी 10 अगस्त,1950 की अधिसूचना में दर्ज हैं। 18 में 14 उपजातियाँ निषाद/मछुआ समुदाय की ही जातियाँ हैं,जो अनुसूचित जाति में शामिल मझवार,तुरैहा,गोंड़, खैरहा,खोरोट, बेलदार की ही पर्यायवाची व वंशानुगत जातियाँ हैं।कुम्हार, प्रजापति शिल्पकार व भर,राजभर पासी,तड़माली की पर्यायवाची/वंशानुगत जाति नाम है।इसके चलते लंबे समय से इनकी मांग रही है कि उन्हें एससी कैटेगरी में डाला जाए, क्योंकि समाज में काफी पिछड़े हैं। अनुसूचित जाति में शामिल होने पर उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तीनों लाभ ओबीसी में रहने से कहीं बहुत ज्यादा मिल सकता है।संयुक्त प्रान्त की 1931 की अछूत व पददलित जातियों की सूची के क्रमांक-8 पर मझवार(माँझी) दर्ज है।सेन्सस ऑफ इंडिया-1961 के मैनुअल पार्ट-1,अपेंडिक्स-एफ फ़ॉर यूपी के अनुसूचित जातियों की सूची क्रमांक-51 पर मझवार की पर्यायवाची व वंशानुगत जाति नाम के रूप में मल्लाह,केवट,माँझी,मुजाविर, राजगौड़, गोंड़ मझवार का नाम दर्ज है।निषाद आरक्षण के सूत्रधार व राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद जो 2001 से ही निषाद/मछुआ समुदाय की मल्लाह,केवट,बिन्द, धीवर, कहार,रैकवार,माँझी,तुरहा आदि को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए आंदोलन करते आ रहे हैं,ने कहा कि सेन्सस कमिश्नर व आरजीआई जब 1961 में माँझी,मल्लाह,केवट आदि को मझवार की पर्यायवाची पहले ही मान चुका है,तो अब अड़ंगेबाजी क्यों?मुलायम सिंह,मायावती,अखिलेश यादव ने अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को क्रमशः 10 मार्च,2004 व 4 मार्च,2008 तथा 22 फरवरी,2013 को भेजा।हर बार आरजीआई कुछ न कुछ आपत्ति लगा देता है,क्या आरजीआई की सुपर पॉवर है?
*मुलायम सिंह यादव ने सबसे पहले चला दांव*
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए 10 मार्च,2004 को केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजे और केन्द्र सरकार द्वारा निर्णय न लेने पर 10 अक्टूबर,2005 को 17 ओबीसी की जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी, जिसे लेकर हाई कोर्ट ने 20 दिसम्बर,2005 को रोक लगा दी थी।हाईकोर्ट में मिली मात के बाद मुलायम सिंह यादव ने फिर से प्रस्ताव केंद्र के पास भेज दिया। इसके बाद सूबे में मायावती की सरकार बनी तो 2007 में मुलायम के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, लेकिन इन जातियों के आरक्षण के संबंध में तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम अर्द्धशासकीय पत्र लिखकर कहा था कि ओबीसी की इन 17 जातियों को एससी श्रेणी में आरक्षण देने के पक्ष में निवेदन कर रही हूँ, लेकिन दलितों के आरक्षण का कोटा 21 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया जाए। इस तरह मामला अधर में लटक गया।
*अखिलेश यादव के फैसले पर कोर्ट का ग्रहण*
मायावती के बाद अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने दिसंबर 2016 को आरक्षण अधिनियम-1994 की धारा-13 में संशोधन कर 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए बकायदा एक प्रस्ताव लेकर आए और उसे पहले कैबिनेट से मंजूरी देकर केंद्र को नोटिफिकेशन भेजा।अखिलेश सरकार की तरफ से जिले के सभी डीएम को आदेश जारी किया गया था कि इस जाति के सभी लोगों को ओबीसी की बजाय एससी का सर्टिफिकेट दिया जाए। ऐसे में भीमराव अंबेडकर ग्रंथालय और जनकल्याण समिति गोरखपुर के अध्यक्ष ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती, जिसके चलते कोर्ट ने 24 जनवरी 2017 को इस नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी।इसके बाद राष्ट्रीय निषाद संघ के अधिवक्ता सुनील कुमार तिवारी द्वारा मुख्य न्यायाधीश की पीठ में साक्ष्य सहित पक्ष रखने पर 29 मार्च,2017 को स्टे वैकेट हो गया।इसी बीच मामला केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में भी फंस गया।
*योगी सरकार ने जारी किया अधिसूचना*
उच्च न्यायालय ने स्टे वैकेट करते हुए निर्णय दिया कि प्रदेश सरकार इन जातियों को एससी प्रमाण पत्र जारी कराए, यह यह अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा।भाजपा सरकार ने सक्षम अधिकारियों को आदेश न कर 24 जून 2019 को अखिलेश यादव सरकार के शासनादेश के जैसा ही नया शासनादेश जारी कर दिया।इस शासनादेश पर गोरख प्रसाद की याचिका पर पुनः स्थगनादेश दे दिया।
*योगी सरकार जवाब दाखिल नहीं कर सकी*
स्थगनादेश खत्म होने के बाद उसके पालन में 24 जून, 2019 को योगी सरकार ने भी हाई कोर्ट के निर्णय का संदर्भ लेते हुए अधिसूचना जारी कर दी। 17 जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करते हुए प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश कर दिया गया, लेकिन तमाम तकनीकी कारणों और अदालत में मामला होने के चलते जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं हो पा रहे थे। हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से लगभग 5 साल बीत जाने के बाद अपना जवाब दाखिल नहीं किया था। ऐसे में 31 अगस्त को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि राज्य सरकार के पास अनुसूचित जाति सूची में बदलाव करने की शक्ति नहीं है और इसलिए यूपी सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया।
सूबे में लंबे समय से 17 जातियों के आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव लौटनराम निषाद का कहना है कि मामला इन्क्ल्यूजन(शामिल करने) का नहीं, बल्कि इंडिकेशन व डिफाइन करने का है। 1950 की जो अधिसूचना है, उसमें यह जातियां अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल हैं।प्रदेश में सिर्फ उसे लागू कराना है।वहीं, हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गई थी कि अनुसूचित जातियों की सूची भारत के राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई थी। इसमें किसी तरह के बदलाव का अधिकार सिर्फ देश की संसद को है। राज्य सरकारों को इसमें किसी तरह का संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने 17 ओबीसी जातियों के एससी कैटेगरी में शामिल के अरमानों पर पानी फेर दिया।
*अखिलेश यादव की सरकार ने एससी में शामिल नहीं,बल्कि परिभाषित किया था*
अखिलेश यादव की सरकार ने 21-22 दिसम्बर व 31दिसम्बर,2016 को जो अधिसूचना जारी किया था, वह 18 अतिपिछड़ी जातियों को शामिल करने के नहीं,बल्कि पहले से जो जातियाँ अनुसूचित जाति में थीं,उनके साथ उनकी जातियों को परिभाषित करने का था।
*आज़ादी से पूर्व जो जो जातियाँ एक थीं,बाद में अलग अलग कैसे हो गईं?*
आज़ादी से डब्ल्यू क्रूक्स,जे.एच. हट्टन,आईसीएस अधिकारी आर.रसेल व हीरालाल एवं आजादी के बाद एंथ्रोपोलीजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डाइरेक्टर डॉ. के.एस. सिंह ने देश की सभी जातियों का वृहद अध्ययन कर दर्जनों वॉल्यूम में “दी प्यूपिल ऑफ इंडिया/The People of India” नामक किताबों में मझवार,गोंड़, खोरोट,मल्लाह,माँझी,केवट,गोड़िया,धुरिया,बिन्द,धीवर,तुरहा,तुरैहा, खरवार,खैरहा,कहार,चाई, तियर, बथवा,बाथम,कीर,भोई,रैकवार,नाविक,मछुआ,खेवट आदि को एक माना है,तो अलग अलग राज्य तो छोड़िए,एक राज्य में ये अलग अलग कैसे हो गईं हैं?गोरखपुर गजेटियर में गोड़िया,धुरिया,कहार को गोंड़ की उपजाति लिखा गया है और मल्लाह से सम्बंधित बताया गया है,तो गोंड एससी व एसटी में गोड़िया,मल्लाह,कहार ओबीसी में क्यों?
*अभिलेखों व शब्दकोशों का महत्व है कि नहीं*
आज़ादी से पूर्व के अभिलेखों में मझवार व माँझी को एक माना गया गया। 1901 के अभिलेख में भी ऐसा ही उल्लेख है।संयुक्त प्रान्त की 1931 की अनटचेबल व डिप्रेस्ड क्लास की जातियों के क्रमांक-8 पर मझवार(माँझी) लिखा है। 1941 में भी ऐसा ही लिखा गया है तो आखिर 1950 की अनुसूचित जातियों की सूची में सिर्फ मझवार ही क्यों सूचीबद्ध किया गया,यह किसकी गलती है?किसी भी जाति धर्म के अनपढ़ व विद्वान से माँझी के सम्बंध में पूछा जाएगा तो वह मल्लाह,केवट आदि ही बताएगा,न कि ब्राह्मण,राजपूत आदि।प्रकाण्ड विद्वानों ने जो भी शब्दकोश लिखे हैं,उसमें माँझी,माझी, केवट, धीवर आदि का अर्थ मछुआ,नाविक,केवट,खेवट,मछुआरा,धीवर,नावचालक,धीमर,कैवर्त,मत्स्यकर्मी,मत्स्यजीवी, मत्स्योपजीवी आदि ही लिखा है।अंग्रेजी में फिशरमैन, सेलर,बोटमैन,फेरीमैन,फिशवर्कर,सी-फेरर आदि व संस्कृत भाषा में धीवर:,कैवर्त: ,नौजीविक: ,दाश: ,मत्स्योपजीवी: ,जालिक:,मत्स्यकर्मी:,दाशेर: आदि शब्द पर्यायवाची/समनामी के रूप में ही मिलते हैं।

*कौन-कौन जातियां एससी में आती हैं*
साइमन कमीशन की सिफारिश पर 1931 में अछूत जातियों का सर्वे (कम्लीट सर्वे ऑफ ट्राइबल लाइफ एंड सिस्टम) हुआ था।जेएच हट्टन की रिपोर्ट में 68 जातियों को अछूत माना गया था।1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत इन जातियों को विशेष दर्जा मिला था। ऐसे में ‘संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 के अंतर्गत उन जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्जा दिया गया है, जो समाज में छुआछूत की शिकार थी।ऐसे में अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्जा मिला।
हालांकि, चेएच हट्टन रिपोर्ट में शिल्पकार व पुश्तैनी पेशेवर जातियों में जिसमें निषाद,मझवार(माँझी),कुम्हार, लोहार आदि को भी अनुसूचित श्रेणी में रखा गया था। उन्हें 1950 के तहत दर्जा तो मिला, लेकिन 1961 की जनगणना के बाद उन्हें कुछ राज्यों से हटा दिया गया।मौजूदा समय में यूपी की एससी श्रेणी में कुल 66 जातियां हैं, लेकिन शिल्पकार की पर्यायवाची/वंशानुगत जातियों को उससे बाहर कर ओबीसी की श्रेणी में रख दिया गया। इसकी एक बड़ी वजह यह रही कि उन्हें सामाजिक,शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा माना गया, लेकिन अछूत नहीं माना।
*आरजीआई लगाता है एससी कटेगरी पर मुहर*
दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ के अध्यक्ष अशोक भारतीय कहते हैं कि अनुसूचित जाति के लिए सबसे जरूरी छुआछूत की शिकार हों।समाज में जो जातियां अछूत में नहीं है, लेकिन समाजिक रूप से पिछड़ी है तो उन्हें मंडल कमीशन ने ओबीसी में रखा है। संविधान (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) अध्यादेश- 1950 में साफ तौर पर है कि कौन-कौन जातियां अनुसूचित जाति की श्रेणी में है।इसके बाद भी अलग-अलग राज्यों से जिन जातियों ने एससी की श्रेणी में शामिल होने की मांग करती हैं तो उसके लिए केंद्र ने शेड्यूल कास्ट ऑफ कमीशनर नियुक्त कर रखा था। 1956 से लेकर 1992 तक शेड्यूल कास्ट आफ कमीशनर तफ्तीश कर अपनी रिपोर्ट देता था और उसके बाद संसद के जरिए उस पर मुहर लगती थी। मंडल आयोग के बाद यह व्यवस्था खत्म कर दी गई है और अब उसकी एक प्रक्रिया बन गई है।इसी प्रक्रिया को पूरा किए बिना संभव नहीं है?अशोक भारतीय के छुआछूत सम्बंधित मुद्दे पर लौटनराम निषाद ने कहा कि दलित वर्ग निस डॉ. अम्बेडकर को भगवान मानता है,उनके द्वारा लिखित अम्बेडकर वाङ्गमय खण्ड-5 व 6 में मछुआ,धीवर आदि को अछूत व अस्पृश्य लिखे हैं।उन्होंने कहा कि देश के बड़े से बड़े दलित नेता व दलित चिन्तक जो मल्लाह,केवट,बिन्द, धीवर, कुम्हार आदि को अछूत न मानते हुए इन्हें एससी कटेगरी में शामिल करने का विरोध करते हैं,उनसे खुली बहस की चुनौती देता हूँ।साहित्य समाज का दर्पण होता है।सैकड़ों साहित्यिक व ऐतिहासिक प्रमाण है कि निषाद मछुआ,केवट,धीवर आदि अछूत हैं।
*अनुच्छेद-17 के अंतर्गत अस्पृश्यता संज्ञेय अपराध घोषित तो क्यों ढूढा जा रहा छुआछूत*
छुआछूत का भेदभाव खत्म के लिए अस्पृश्यता निवारण अधिनियम-1955 बनाया गया।संविधान के अनुच्छेद-17 के अनुसार अस्पृश्यता को संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया गया।ऐसे में निषाद,मल्लाह,केवट,बिन्द, धीवर,कहार,राजभर,कुम्हार आदि में छुआछूत का लक्षण खोजना कहाँ तक उचित है?अगर वर्तमान में छुआछूत का मानक तलाशना अपराध की श्रेणी में है और अपने आप में संविधान का उल्लंघन है।
*अनुसूचित जाति में शामिल होने क्या रास्ता?*
अनुसूचित जाति में उसी जाति को शामिल किया जाता है, जो अछूत हैं।किसी जाति को एससी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकारों को नहीं है बल्कि यह पावर केंद्र के पास है और इसके लिए बकायदा एक प्रक्रिया है।साल 2017 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रहते हुए थावरचंद्र गहलोत ने एक पत्र के जवाब में बताया था कि कैसे किसी जाति को अनुसूचित जाति का दर्जा मिल सकता है।राज्य सरकार द्वारा किसी भी जाति को एससी में शामिल करने के लिए प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजना होगा। इस पर रजिस्टार जनरल ऑफ इंडिया और अनुसूचित जाति आयोग से सलाह ली जाती है। ऐसे में अगर दोनों ही जगह से यह स्वीकृति मिल जाती है कि अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल होने के पैमाने को पूरा करती हैं तो सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय संसद में संसोधन विधेयक पेश करता है और पास हो जाता है तो फिर राष्ट्रपति के मंजूरी के बाद उसे दर्जा मिलता है।
*एससी आरक्षण का दायरा बढ़ाना होगा*
वहीं, सामाजिक चिन्तक दयाराम निषाद कहते हैं कि 1950 में जिन जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्जा मिला था, उनमें शिल्पकार जातियां थीं, जिनमें कुम्हार, प्रजापति आदि उप-जातियां भी शामिल थीं। 1931 की जाति जनगणना से इसकी पुष्टि भी की जा सकती है।इसके बावजूद कुछ राज्यों में कुम्हार, प्रजापति, सोनार, लोहार आदि जातियों को अनुसूचित जाति से बाहर कर दिया गया। हालांकि कुछ जगहों यथा उत्तराखंड में आज भी ये जातियां अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल हैं।मध्य प्रदेश के 8 जिलों में कुम्हार,प्रजापति अनुसूचित जाति वर्ग में आज भी हैं। इसी तरह निषाद मछुआ समुदाय की मल्लाह,केवट,माँझी,धीवर, धीमर,झिमर, झीवर,कश्यप,कहार,तुरहा आदि दिल्ली में व मल्लाह,केवट,बिन्द, चाई, तियर,झालो मालो, कैवर्त,जलकेउट,कैवर्ता आदि पश्चिम बंगाल व कैवर्ता,जलकेउट,धिबरा,डेवर,जलकेवट, तियर,तियार,तियोर आदि ओडिशा में एससी है तो यूपी-बिहार में ओबीसी।उत्तर प्रदेश में मझवार,तुरैहा, गोंड़,खरवार,खैरहा,पनिका,बेलदार,खोरोट आदि यूपी में एससी व माँझी,मझवार एमपी,छत्तीसगढ़ में एसटी हैं।स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व जब सभी एक थीं तो आज इन्हें अलग अलग क्यों माना जा रहा है।
वह यह भी कहते हैं कि एससी आरक्षण के लिए साफ तौर पर संवैधानिक तथ्य है कि अनुसूचित जाति के अनुपात के मुताबिक उनका प्रतिनिधित्व हो। ऐसे में ओबीसी की कुछ जातियों को एससी में शामिल किया जा रहा है तो उसके आरक्षण दायरे को भी बढ़ाए जाना चाहिए। सरकारें आरक्षण के दायरों को बढ़ाना नहीं चाहती जबकि वो चाहें तो तमिलनाडु की तरह बढाकर उन्हें शामिल कर सकती हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि 1931 के बाद देश में जातिगत जनगणना नहीं कारई गई है, जिसके चलते उनके पास ओबीसी का कोई आंकड़ा नहीं है।अनुमानतः 52 प्रतिशत ओबीसी को मात्र 27 प्रतिशत कोटा है और आये दिन नई नई जातियों को इसमें बेरोटोक शामिल किया जा रहा।
*केंद्र सरकार चाहे तो दे सकती है एससी आरक्षण*
कन्हैया राम निषाद कहते हैं कि केंद्र की सरकार अगर चाहे तो साल 1950 में जिन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिला था और बाद में बाहर कर दिया गया है, उन्हें परिभाषित कर शामिल कर सकती है।यूपी में मुलायम-अखिलेश सरकार ने इसीलिए ओबीसी जातियों को एससी श्रेणी में शामिल करने के लिए भेज रही हैं, क्योंकि ओबीसी की दूसरी बाकी जातियों का आरक्षण का लाभ मिल सके। दूसरी तरफ बसपा का विरोध यह था कि एससी श्रेणी में 4 फीसदी ओबीसी को डाला जा रहा है, उसके आरक्षण को भी बढाया जाए।इसके चलते अति पिछड़ी जातियां पेंडुलम की तरह झूल रही हैं। सामाजिक न्याय की रिपोर्ट को भी लागू नहीं किया जा रहा है।
*सामाजिक न्याय की रिपोर्ट लागू नहीं हुई*
बता दें कि योगी सरकार ने पिछले छह सालों में दलितों के आरक्षण का नए सिरे से निर्धारण करने के लिए कोई सामाजिक न्याय समिति नहीं बनाई।राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में 2001 में तत्कालीन मंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में सामाजिक न्याय समिति बनी थी। इसने अपनी सिफारिशों में दलितों के आरक्षण को भी दो श्रेणियों में बांटकर नए सिरे से आरक्षण का निर्धारण की जरूरत जतायी थी। हालांकि, योगी सरकार ने 2018 में ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय समिति की गठित की थी, लेकिन उसकी सिफारिशों को अभी तक लागू नहीं किया गया। इसमें कहा गया था कि 79 पिछड़ी जातियों को 3 हिस्सों में बांटकर आरक्षण दिया जाए। ऐसे में योगी सरकार अगर ओबीसी के आरक्षण को तीन हिस्सों में बाँटकर सूबे की अतिपछड़ी जातियों को संतुष्ट कर सकती थी।वही लौटनराम निषाद ने कहा कि वैसे ओबीसी को उ की जनसंख्या के अनुपात में आधा ही आरक्षण कोटा दिया गया है।ऐसे में बिना समानुपातिक कोटा के ओबीसी का वर्गीकरण सामाजिक न्याय के अनुकूल नहीं होगा।सही तरीके से लागू करने के लिए ओबीसी की जातिगत जनगणना आवश्यक है,अन्यथा ओबीसी में नफ़रत ही पैदा होगी।
*योगी सरकार ने चुनाव पूर्व आरजीआई को लिखा पत्र,पर सार्वजनिक नहीं हुआ जवाब*
राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने बताया कि 17 दिसम्बर,2021 को रमाबाई पार्क में निषाद पार्टी-भाजपा की संयुक्त सरकार बनाओ अधिकार पाओ रैली का आयोजन किया गया था।जिसमें गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य,दिनेश शर्मा व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह आदि शामिल हुए थे।निषाद पार्टी द्वारा प्रचारित किया गया था कि इस रैली में गृहमंत्री निषाद समाज को आरक्षण के सौगात की घोषणा करेंगे।आरक्षण के नाम पर बड़ी संख्या में निषाद समुदाय के लोग जुटे।परन्तु रैली में न तो आरक्षण की घोषणा हुई और न निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद द्वारा मंच पर आरक्षण का प्रस्ताव ही रखा गया।जिससे निषादों का गुस्सा फूट पड़ा, भीड़ कुर्सियों को तोड़ने लगी और नारा लगाया जाने लगा कि-“आरक्षण नहीं तो वोट नहीं।”
निषादों की नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री ने चुनाव से 20 दिसंबर,2021 को मझवार की पर्यायवाची जातियों के सम्बंध में जानकारी के लिए आरजीआई को पत्र भेजा गया।परन्तु अभी तक आरजीआई के जवाब को सार्वजनिक नहीं किया गया।
*सभी दल चाहते हैं तो क्यों नहीं मिल पा रहा एससी स्टेटस*
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव घोषणा पत्र में अन्य राज्यों की भाँति यूपी की निषाद/मछुआ जातियों को एससी का कोटा दिलाने का वादा किया।2012 के चुनाव घोषणा पत्र व दृष्टि पत्र में भाजपा ने 17 अतिपिछड़ी जातियों सहित नोनिया, लोनिया, बंजारा, बियार आदि को एससी में शामिल कराने का वादा किया।भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने 5 अक्टूबर,2012 को मछुआरा दृष्टि पत्र जारी कर 2014 में भाजपा सरकार बनने पर आरक्षण की विसंगति दूर कर सभी निषाद मछुआरा जातियों को एससी व एसटी का आरक्षण दिलाने का वादा किये थे।रालोद,बसपा ने भी वादा किया।उत्तर प्रदेश की मुलायम,मायावती,अखिलेश यादव की सरकार ने केन्द्र सरकार को 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा।ऐसे में सवाल यह है कि जब सभी दल ऐसा चाहते हैं,तो अतिपिछड़ी जातियों को एससी का कोटा क्यों नहीं मिल रहा?कुल मिलाकर अतिपिछड़ी जातियाँ राजनीतिक दलों के लिए दुधारू गाय व महज वोटबैंक हैं।
*चुटकी बजाते मिल सकता है ओबीसी की जातियों को एससी का दर्जा*
उत्तर प्रदेश व केन्द्र में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है।भाजपा अपने वादे के प्रति बचनबद्ध हो तो चुटकी बजाते मिल जाएगा 18 ओबीसी की जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा। 18 ओबीसी की जातियों में 14 जातियाँ निषाद/मछुआरा समुदाय की हैं,जिनकी आबादी उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में लगभग 13 फीसद है। भाजपा श्रीराम व निषादराज की मित्रता के नाम पर कई बार निषादराज के वंशजों का वोट लिया,पर इनके साथ इंसाफ न कर लॉलीपॉप ही दिखाया।उक्त टिप्पणी करते हुए लौटनराम निषाद ने कहा कि जब संविधान व उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध 2 दिन में ईडब्ल्यूएस के नाम 10 प्रतिशत कोटा संविधान संशोधन कर दे दिया गया तो 18 अतिपिछड़ी जातियों को देने में इतनी देरी क्यों?

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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