श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में वैश्य महासम्मेलन द्वारा प्रधानमंत्री के नाम आज अपर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा
सतना से हमारे संवाददाता अवध गुप्ता की रिपोर्ट
श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में आज बुधवार 21 दिसंबर को वैश्य महासम्मेलन के पदाधिकारियों एंव जैन समाज द्वारा भारत के प्रधानमंत्री के नाम अपर कलेक्टर संस्कृति जैन जी को ज्ञापन सौंपा
ज्ञापन में कहा गया है कि झारखंड राज्य में स्थित श्री सम्मेद शिखरजी पौराणिक काल में ही जैन धर्म अनुयायियों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान रहा है यहां की राज्य सरकार द्वारा इस पवित्र स्थल को पर्यटन क्षेत्र घोषित कर शहर सपाटे पिकनिक के नाम पर नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है जोकि बिल्कुल अनुचित है जैन धर्म के कुल 24 तीर्थकरों में से 20 तीर्थ करो कि निर्माण स्थली श्री सम्मेद शिखर पवित्र क्षेत्र को तुरंत पर्यटन स्थल से हटाया जाय।
*इंजी रमेश जैन* ने कहा कि सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह ज़िले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म के दिगंबर मत का प्रमुख तीर्थ है। इसे ‘पारसनाथ पर्वत’ के नाम से भी जाना जाता है।
सम्मेद शिखर तीर्थ या पारसनाथ पर्वत का तीर्थ क्षेत्र के साथ ही पूरे भारत में प्राकृतिक, ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रखता है। यह समुद्र के तल से 520 फ़ीट की ऊँचाई पर लगभग 9 किलोमीटर की परिधि में फैला है। सम्मेद शिखर तीर्थ पारसनाथ पर्वत की उत्तरी पहाडिय़ों एवं प्राकृतिक दृश्यों के बीच स्थित तीर्थ स्थान है। यहाँ पर प्राकृतिक हरियाली और प्रदूषण मुक्त वातावरण के मध्य स्थित गगनचुम्बी मंदिरों की श्रृंखला लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इस तरह यह तीर्थ क्षेत्र भक्तों के मन में भक्ति व प्रेम की भावना को जगाता है तथा उनको अहिंसा और शांति का संदेश देता है।
जैन धर्म में प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेद शिखर और अयोध्या, इन दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसका अर्थ यह है कि इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको ‘अमर तीर्थ’ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में यहाँ पर तीर्थंकरों और तपस्वी संतों ने कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थयात्रा शुरू होती है तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भरा होता है। इस तप और मोक्ष स्थली का प्रभाव तीर्थयात्रियों पर इस तरह होता है कि उनका हृदय भक्ति का सागर बन जाता है।
इस दौरान लखन लाल केसरवानी रामवतार चमाडिया इंजी रमेश जैन प्रभात वोरा पंकज शाह संजय खेमका प्रदीप जैन श्याम लाल गुप्ता श्यामू वर्धमान जैन अरविंद जैन अशीष जैन अभिषेक जैन अंशुल जैन गणेश प्रसाद गुप्ता नीरज गुप्ता अरुण गुप्ता सुनील गुप्ता अनिमेष गुप्ता सहित सर्व समाज के पदाधिकारि उपस्थित रहे।