स्वच्छ भारत अभियान और स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 के नाम पर नगर परिषद मझौली ने करोड़ों रुपये खर्च कर मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (MRF सेंटर) कम्पोस्ट पिट और कचरा प्रबंधन प्लांट स्थापित किए।
जबलपुर/मझौली
पोस्टरों, फ्लो-चार्ट और स्लोगन से तो यह व्यवस्था हाई-टेक और अनुशासित दिखाई देती है, लेकिन जमीनी हकीकत बिलकुल उलट है।
योजना केवल कागजों में –गीला और सूखा कचरा अलग-अलग घर-घर से संग्रहित होता है।
गीले कचरे से कम्पोस्ट बनाई जाती है।सूखे कचरे को 9 भागों में विभाजित कर पुनर्चक्रण (रीसायकल) किया जाता है।
C\&D (निर्माण एवं विध्वंस) कचरे का भी अलग निस्तारण किया जाता है।
सैनिटरी व मेडिकल वेस्ट के लिए सुरक्षित हैंडलिंग और स्टोरेज का प्रावधान है।
लेकिन हकीकत –घर-घर से आज भी मिश्रित कचरा उठ रहा है।डस्टबिन और डंपिंग पॉइंट्स पर गीला-सूखा कचरा एक साथ फेंका जा रहा है।कम्पोस्ट पिट और 10% गोबर घोल की प्रक्रिया सिर्फ कागजों में चल रही है।
MRF सेंटर पर मशीनें और प्लेटफार्म तो हैं, लेकिन संचालन नहीं।
निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट खुले में पड़ा है, जिससे पर्यावरण और ग्रामीण परेशान हैं।
सैनिटरी वेस्ट को अलग संभालने की बजाय आम कचरे में ही फेंका जा रहा है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि “नगर परिषद सिर्फ दिखावे के लिए फ्लो चार्ट और प्लास्टिक बैनर छपवाकर लगा रही है। कचरा प्रबंधन पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन इसका कोई जमीनी असर नहीं दिख रहा। न सड़कें साफ हैं, न डंपिंग सिस्टम।
उल्टा गंदगी और बदबू से आम जनता त्रस्त है
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि MRF सेंटर और कम्पोस्ट प्लांट ईमानदारी से चलाए जाएं तो न केवल कचरा कम होगा बल्कि नगर परिषद को राजस्व भी मिलेगा। लेकिन फिलहाल यह प्रोजेक्ट सिर्फ “फोटो सेशन और रिपोर्ट कार्ड चमकाने का हथियार” बनकर रह गया है।
सवाल उठता है कि
करोड़ों खर्च होने के बाद भी आखिर नगर परिषद मझौली जनता को गंदगी से मुक्ति क्यों नहीं दिला पा रही?
जिम्मेदारी किसकी है—नगर परिषद के अधिकारियों की, कचरा ठेकेदारों की, या फिर निगरानी करने वाले जिला प्रशासन की?