प्रदेश के दो महत्वपूर्ण राजनीतिक दल कांग्रेस और बीजेपी ने इस बार श्केवट जयंती अपने अपने स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर मनाई
मध्यप्रदेश
✍🏾 अमर नोरिया ( पत्रकार )
नरसिंहपुर
इसके लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान व पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ जी के प्रति समाज आभार व धन्यवाद ज्ञापित करता है । महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदेश में माझी समाज के बड़े वोट बैंक को देखते हुए राजनीतिक दलों में माझी समाज के प्रति जो प्रभाव अब पड़ रहा है उसको लेकर यह आयोजन बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं । इन आयोजनों के माध्यम से राजनीतिक दलों ने माझी समाज का हितेषी और हितचिंतक होने का संदेश देने का प्रयास किया है । जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में इस आयोजन के दौरान अपने सम्बोधन में जो बात कही है उससे लगता है कि उन्हें माझी समाज की समस्याओं को लेकर सही तरह से जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है । जिसके चलते वह माझी समाज की समस्याएं और माझी जनजाति प्रकरण के निराकरण को लेकर सही तरीके से बात नहीं रख पा रहे हैं,उन्हें यह बताया जाना था कि गत दिनों प्रदेश विधानसभा में सरकार के जनजाति विभाग द्वारा 1950 की अधिसूचना के आधार पर माझी के साथ ढीमर,भोई,केवट,मल्लाह को समाहित होने की बात जयस से राष्ट्रीय संरक्षक व विधायक डॉ श्री हीरालाल अलावा के प्रश्न के जबाब में दी है, तब भाजपा प्रदेश सरकार इस मामले में आदेश जारी कर ढीमर,भोई,केवट, मल्लाह के अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र बनाये जाने के आदेश जारी क्यों नहीं कर रही है
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित की गई केवट जयंती के आयोजन में माझी समाज जनों को संबोधित करते हुए कहा कि अब परंपरागत तालाबों व जल सरंचनाओं पर मछुआ समाज का प्रमुखता का अधिकार रहेगा और इन तालाबों पर जो दबंग कब्जे किये हैं उन्हें मुक्त कराया जाएगा इसके लिए वह अभियान चलाएंगे और यह अभियान पूरे प्रदेश के तालाबों को लेकर चलेगा तथा दूसरी बात में उन्होंने प्रदेश में माझी प्रमाण पत्र धारकों की नौकरी करने के दौरान की जा रही कार्रवाई पर विसंगतिपूर्ण जो कार्य हुआ है उसको सुधारने का प्रयास किया जायेगा,किसी की भी नोकरी नहीं जायेगी । प्रदेश में 18 साल सत्ता में रहने के बाद जिस तरह से प्रदेश के मुखिया श्री शिवराज सिंह चौहान माझी समाज जनों को दिलासा दिला रहे हैं और व माझी प्रमाण पत्रधारियों सहित तालाबों के अधिकार को लेकर जिस तरह की बात कर रहे हैं माझी समाज काफी लंबे समय से इस तरह के मामलों को लेकर हजारों ज्ञापन सौंप चुका है । कई लोग अनेकों बार अपने गांव के तालाबों को लेकर जनसुनवाई सहित अन्य स्तरों पर आवेदन दे दे कर थक चुके हैं किंतु उन्हें तालाबों के पट्टे और तालाबों पर कब्जा नहीं मिला है दूसरी बार निषादराज व केवटराज स्मारक बनाए जाने की बात भी उन्होंने कही है इससे यह लगता है कि आखिर शिवराज जी को अब यह सब क्यों करने की आवश्यकता पड़ रही है ? जबकि इसके पूर्व 1992 में आयोजित माझी कुम्भ व 2012 में मछुआ पंचायत सहित वर्ष 2008 व 2013 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह बात पूरी समाज के सामने रख चुके हैं जिस पर समाज उन्हें प्रदेश की सत्ता में लगातार तीसरी बार बैठा चुका है और उपचुनाव में भी अपने कुछ इन्हीं वादों और आश्वासनों को लेकर समाज उन्हें चौथी बार भी सत्ता सौंप चुका है । ऐसे में जब प्रदेश के मुखिया कमेटी गठित कर माझियों की समस्याओं के निराकरण की बात कह रहे हैं तो कहीं ना कहीं यह एक बार फिर यह चुनावी भाषण महसूस होता है । क्योंकि अब समाज पूर्व से दिये गये आश्वासन वादे और घोषणाओं को लेकर काफी सजग और सतर्क हो गया है अब आने वाले 14 जून को जिस तरह से पूरे प्रदेश में धिक्कार दिवस मनाये जाने की जो तैयारियां चल रही हैं, ऐसे में हम सब की भी जिम्मेदारी बनती है कि राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस को जिस तरह से माझी जनजाति आरक्षण को लेकर स्पष्ट तौर पर बात कहना चाहिये थी वह बात ना तो कांग्रेस के नेता के कह पा रहे हैं और ना ही राज्य की सत्ता में 18 वर्ष से बैठी भाजपा सरकार । मध्यप्रदेश में माझी के संवेधानिक हक और अधिकार की नैया अब माझियों की वोटों की ताकत के आधार पर ही उनके हक और अधिकार दिला सकती है ,बाकी जिस तरह की कमेटी गठित करने की बात की जाती रही हैं वह पहले भी हो चुकी हैं यह केवल समाज को चुनावी समय मे केवल और केवल दिलासा देने की बात है ..!
विशेष – समाजहित को सर्वोपरि रखते हुए यह पोस्ट प्रेषित की जा रही है, राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस से जुड़े किसी भी सामाजिक बन्धु की व्यक्तिगत/राजनीतिक भावनाओं को किसी भी तरह की ठेस पहुँचाना मेरा उद्देश्य नहीं है