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Friday, June 20, 2025

कृष्ण ने गोपाष्टमी से शुरू किया था गो चराना : स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी

महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि
भारत में पर्वों को मनाने की एक दीर्घकालीन परम्परा है

जबलपुर 

भारतीय काल गणना के ज्योतिषीय आधार भारतीय ऋषि मुनियों की “पञ्चाङ्ग संरचना” और उसके अनुसार तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त, वार, घटी, पल, ग्रह, योग आदि हैं। अतीत में घटी घटनाएँ, पर्वों का आकार और स्वरूप धारण करती हैं। आधुनिक ज्योतिष विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है। वर्ष का कलेण्डर भी इसी आधार पर सुनिश्चित होता है तथा तदनुसार कार्यक्रम होते हैं और एक पर्वों की श्रृँखला चल पड़ती है। इसी क्रम में एक नवबंर को गोपाष्टमी मनाई जाएगी।

पाँच हजार वर्ष पूर्व द्वापर युग में द्वापर के महानायक, तत्कालीन युगपुरूष श्रीकृष्ण ने भारतीय पर्वों की एक परम्परा का शुभारम्भ अपनी लीलाओं के माध्यम से किया। ये पर्व अधिकांश प्रकृति, पर्यावरण एवं प्रकृति के विभिन्न उपादानों से सम्बंधित हैं। जैसे पर्वतों का संरक्षण, पेड़-पौधों, वनस्पतियों का रक्षण और औषधीय गुण वाले पौधों का रोपण। नदी-संरक्षण के साथ नदियों में प्रदूषण की रोकथाम। गायों का रक्षण, गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र का महत्त्व स्थापित कर “पञ्चगव्य” की उपयोगिता को स्थापित करना। गोपालन, कृषि के महत्त्व को स्थापित करना। जंगल में गायों को घास चराने ले जाना, गो-चारण की वृत्ति को हर युग में प्रासंगिक बनाये रखने के लिये स्वयं गोचारण का व्रत धारण करना। धरती को हरीतिमा से परिपूर्ण रखने के लिये “वन्य विहार”करना इत्यादि। ये सभी विधायें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी द्वापर युग में प्रासंगिक थीं! तभी से विभिन्न पर्वों की परम्परा भारतवर्ष में अक्षुण्ण है।

गोवर्धन पूजा, गोवत्स द्वादशी, गोपाष्टमी, हल षष्ठी (बलराम जयंती) ये कुछ भारतीय पर्व ऐसे हैं जो आज भी जनमानस में रचे बसे हैं। इन पर्वों को मनाये जाने की धारा को और तीव्र करना, इन्हें युगानुकूल, समसामयिक बनाना आज के समय की आवश्यकता है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि प्रतिवर्ष “गोपाष्टमी” के रूप में मनाये जाने की परम्परा है। द्वापर युग नायक श्री कृष्ण आठ वर्ष की अल्पायु के थे, जब उन्होंने अपने माता-पिता से गायों को चराने जंगल जाने की जिद्द की और अपने बाल सखाओं गोप-गोपालों को संगठित कर सभी से गोचारण करने हेतु आग्रह किया। बाल हठ के सामने श्रीकृष्ण के माता-पिता और श्रीकृष्ण के बालसखाओं के माता-पिताओं को गायों को घास चराने जंगल जाने के अभियान को स्वीकृति देना पड़ी।

उस तिथि को प्रातःकाल शुभ मुहूर्त में बृज मण्डल के ग्रामीण क्षेत्र की गायों और गो-संतानों को एकत्रित कर बृज मण्डल के बालकृष्ण के समस्त बालसखाओं का एकत्रीकरण हुआ। बृजमण्डल के आबाल, वृद्ध, नर-नारी सभी ने श्री कृष्ण-बलदाऊ (श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी) के नेतृत्व में एक वृहद् गो-संगोष्ठी कर गाय के महत्त्व को रेखांकित किया। “गोबर-गोमूत्र, पञ्चगव्य की महिमा का निरूपण किया तथा गो-वंश के सृष्टि-संरक्षण में योगदान को जनमानस में स्थापित किया। तदुपरांत घर के बड़े-बुजुर्गों ने श्रीकृष्ण बलराम सहित गोप-गोपालकों का तिलक किया, पुष्पमालाओं से गोपालकों के कण्ठ सुशोभित किये। लकुटि-कमरिया सभी को दी, गोपालकों की आरती उतारी,गायों का भी तिलक लगाकर पूजन कर उन्हें” गो-ग्रास” समर्पित कर जंगल की ओर विदा किया।

द्वापर युग की गोचारण व्रत की यह घटना भारतवर्ष के “इतिहास की अमर तिथि” हो गई। भारतीय पर्व परम्परा का यह एक प्रेरणास्पद “अमर पाथेय” हो गया। हम इसे आज भी प्रासंगिक बनाये रखना चाहते हैं। अतः मध्यप्रदेश की समस्त गो-शालाओं में, गोपालकों के घरों में गायों का आज के दिन पूजन हो और गाय के युगानुकूल, समसामयिक महत्व को आधुनिक युग के विकसित “भौतिक विज्ञान की कसौटी में कस कर” उसके वैज्ञानिक विश्लेषण को जनमानस में स्थापित करना समय की अनिवार्य आवश्यकता सिद्ध की जाये। इस पर्व के माध्यम से हमारा प्रयास है, इसे सफल, सार्थक और प्रभावी बनाना।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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