26 C
Jabalpur
Friday, June 20, 2025

किस दिशा में जा रहा है हमारा लोकतंत्र

संसद के भीतर अब ऐसी स्थिति आ गई कि विपक्षियों को बोलने नही दिया जा रहा है। डाक्‍यूमेंटेशन देने नहीं दिया जाता है

राहुल गांधी जब संसद में बोलते हैं तो उनका जबाव सरकार नहीं देती है। सब पूछना चाहते  है कि संसद में सवाल करना कौनसा गुनाह है। मोदी सरकार को राहुल का सवाल पूछना ही गलत लगता है। इतिहास जरूर पूछेगा कि संसद में सवाल पूछने से क्‍यों रोका गया है। संसद में उनके पूरे भाषण को हटा दिया जाता है। आज राहुल गांधी पर हुई कार्यवाही से पूरा विपक्ष उनके साथ खड़ा हो गया है। सही मायनों में कहा जाये तो इस कार्यवाही से पूरे विपक्ष को एक होने का अवसर दे दिया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का दोष यही था कि देश से भाग गए भगोडों के नाम उन्होंने भरी सभा में पुकारे थे। लेकिन यह असली सवाल नहीं है। यह सवाल व्यक्ति राहुल गांधी तक सीमित है। यह सवाल उस प्रवृत्ति तक नहीं जाते जिसके केंद्र में राहुल गांधी नाम का व्यक्ति है। उस प्रवृत्ति को समझने के लिए नए जमाने की तानाशाही और उसे लागू करने के अत्याधुनिक औजारों को गौर से देखना होगा। सारा खेल इस बात का है कि कोई भी तानाशाह, सत्ता हमेशा के लिए अपने हाथ में चाहता है और उसके लिए हर वह हथकंडा अपनाता है जिससे उसकी सत्ता मजबूत होती है और हर उस संस्था को कमजोर या बर्बाद कर देता है जो उसके साथ सत्ता की हिस्सेदारी करना चाहती है। भारत में सत्ता पाने का सीधा माध्यम चुनाव में जीत हासिल करना होता है। इसलिए सबसे पहले जरूरत होती है कि चुनाव को प्रभावित किया जाए या यूं कहें उसे अपने कब्जे में लिया जाए।

आज वर्तमान में गौर से देखा जाए तो लोकतंत्र का दमन करने के लिए यही हथकंडे पूरे देश में अपनाए जा रहे हैं। राहुल गांधी इसके ना तो पहले शिकार हैं और ना ही आखरी। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, हेमंत सोरेन, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, केएसआर सब के ऊपर यही हथकंडे अपनाए गए हैं। फर्क बस इतना है कि किसने अपना दामन किस हद तक बचा कर रखा है और उसकी राजनैतिक वजनदारी कितनी है। निश्चित तौर पर राहुल गांधी इन सभी नेताओं में सबसे ज्यादा वजनदार है। वे इनकम टैक्स से नहीं डरे, सीबीआई से नहीं डरे, ईडी की 60 घंटे तक चली पूछताछ से नहीं डरे, एसपीजी सुरक्षा हटाए जाने से नहीं डरे, उनके खिलाफ वर्षों से चलाए जा रहे दुष्प्रचार अभियान से नहीं डरे, देश के सबसे बड़े धन्ना सेठ की तिजोरी से नहीं डरे और तानाशाह से आंख में आंख मिलाकर संसद और सड़क पर उसका कच्चा चिट्ठा खोलने से नहीं डरे। इसलिए उन्हें रास्ते से हटाने के लिए अतिरिक्त मेहनत की जा रही है। लेकिन असल बात तानाशाही से संघर्ष की है। जब कोई तानाशाह गद्दी पर बैठता है, तो मीडिया, गोदी मीडिया बन जाता है, संवैधानिक प्रक्रिया कांस्टीट्यूशनल हार्डबाल बन जाती हैं और पूरा लोकतांत्रिक ढांचा शरीर से लोकतांत्रिक दिखता है लेकिन उसकी प्रवृत्ति तानाशाही की हो जाती है। पुलिस चोर को नहीं पकड़ती, फरियादी को पकड़ती है। अदालत अपराधी को दंडित नहीं करती, फरियादी से सवाल करती है। न्याय की मूल भावना मर जाती है और प्रक्रिया ही कानून बन जाती है। जुल्म को न्याय की तरह प्रचारित किया जाता है।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

Latest News

Stay Connected

0FansLike
24FollowersFollow
0FollowersFollow
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Most View