मां काली ने कालेश्वर महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश में शिव के ऊपर रखा था पैर, दैत्यों का नरसंहार: पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यही की तपस्या
काली माता ने दानवों से देवताओं की कई बार रक्षा की थी। ऋग्वेद के अनुसार एक बार ऐसा हुआ कि दानवों का अंत करने के बाद भी मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ तो भोलेनाथ को स्वयं उनका क्रोध शांत करने के लिए आना पड़ा।
शिवालिक पहाड़ियों से जुड़ा है इतिहास
ऋग्वेद के अनुसार कांगड़ा के देहरा उपमंडल के कालेश्वर में ब्यास नदी के किनारे एक प्रसिद्ध कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर है। कथा मिलती है कि सतयुग में हिमाचल की शिवालिक पहाड़ियों में दैत्य जालंधर के आतंक से देवता, ऋषि-मुनि सभी परेशान थे। सभी ने भगवान श्रीहरि से इस समस्या का समाधान मांगा। तभी देवताओं, ऋषियों और मुनियों ने अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान कीं। इससे महाकाली का जन्म हुआ। उन्होंने कुछ ही क्षणों में जालंधर और अन्य दैत्यों का नाश कर दिया।
तब शिव पहुंचे काली का क्रोध शांत करने
दैत्यों के संहार के बाद भी जब काली का क्रोध शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव स्वयं पहुंचे। कथा के अनुसार वह युद्ध भूमि लेट गए और क्रोधित माता का पैर उनके ऊपर पड़ गया। देवी काली को जैसे ही इस बात का अहसास हुआ तो वह एकदम शांत हो गईं। लेकिन उन्हें बार-बार इस गलती का अफसोस होता रहा। प्रायश्चित करने के लिए वर्षों तक हिमालय पर विचरती रहीं। एक दिन वह कालेश्वर में ब्यास नदी के किनारे बैठकर भगवान शिव का ध्यान करने लगीं। भोलेनाथ ने उस समय देवी काली को दर्शन दिए और उस स्थान पर ज्योर्तिलिंग की स्थापना की। तब से इस स्थान को काली और शिव यानी कि कालीनाथ कालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।
पांडवों से भी जुड़ा है कालेश्वर महादेव का इतिहास
कालीनाथ कालेश्वर महादेव का इतिहास पांडवों से भी जुड़ा है। कथा मिलती है अज्ञातवास के दौरान पांडव जब यहां आए तो अपने साथ भारत के प्रसिद्ध तीर्थों प्रयाग, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार और रामेश्वरम् का जल साथ में लेकर आए थे। तब उन्होंने इन पंचतीर्थों के जल को पूर्व से स्थित तालाब में डाल दिया। तब से इस स्थान को पंचतीर्थी के नाम से जाना जाने लगा। यूं तो पंचतीर्थी में स्नान का हमेशा ही पुण्य मिलता है लेकिन बैसाखी के दिन यहां स्नान करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है।