जैविक खेती अपनाने से भूमि की उर्वरा शक्ति और उत्पादन बढ़ने के साथ आमदनी में भी हुआ इजाफा
जबलपुर, 02 जनवरी, 2023
कृषि की लागत को कम करने और उत्पादन बढ़ाने नित नए प्रयोग हो रहे हैं। किसानों में भी इस विषय मे जागरूकता बढ़ रही है। शासन की नीतियों और प्रोत्साहन के फलस्वरूप कई किसान प्राकृतिक और जैविक खेती को अपना रहे हैं तथा परम्परागत पद्धति के साथ नई तकनीक का समावेश कर एक नई क्रांति ला रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान ठाकुर विनय सिंह हैं। जो जैविक खेती को अपनाकर भूमि की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने में कामयाब हो रहे हैं बल्कि अपेक्षाकृत ज्यादा उत्पादन लेकर अच्छी आय भी अर्जित कर रहे हैं। बायोलॉजी विषय के साथ स्नातक शहपुरा विकासखंड के ग्राम भीटा फुलर के 53 वर्षीय किसान ठाकुर विनय सिंह खेती में नये-नये प्रयोग के लिये जाने जाते हैं। आसपास के किसानों को भी वे जैविक खेती को अपनाने प्रोत्साहित कर रहे हैं।
प्रगतिशील कृषक के तौर पर अपनी पहचान बना चुके विनय सिंह को खेती में नवाचार के लिये कई मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। जिला मुख्यालय पर वर्ष 2018 में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि लोक निर्माण मंत्री श्री गोपाल भार्गव के हाथों कृषि जैविक कीटनाशकों के उपयोग के लिये पुरस्कृत हो चुके हैं। उन्हें विकासखंड स्तर पर 2017-18 में गोपाल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
कृषक विनय सिंह के अनुसार उन्होंने आज से लगभग 8-9 वर्ष पूर्व जैविक खेती के बारे में सुना था। तभी से अपने खेत मे जैविक खेती को अपनाने का मन बना लिया था। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के अधिकारियों से भी उन्हें भरपूर सहयोग मिला। कृषि विस्तार अधिकारियों से जानकारी प्राप्त कर उन्होंने जैविक खेती प्रारंभ की। विनय सिंह खेती के साथ-साथ एक डेयरी फार्म भी संचालित करते हैं। इससे उनके पास गोमूत्र व गोबर की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध रहती है। जिससे वे कंपोस्ट खाद बनाते हैं।
खेती की बढ़ती लागत व रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते दुष्प्रभाव की वजह से उन्होंने जैविक खेती को अपनाया। वे आज करीब 55 एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं। विनय सिंह अपनी कृषि भूमि में वेस्ट डी कंपोजर का उपयोग कर भूमि का उपचार करते हैं एवं फसल में पानी देते समय भी हर बार वेंचुरी से वेस्ट डी कंपोजर का छिड़काव करते हैं।
विनय सिंह खेती में लगने वाले सभी जैविक आदानों जैसे घन जीवामृत, षठरस,गाजर घास स्वरस, खनिज जल, गौ अमृत, पांच पत्ती काढ़ा, दसपरणी काढ़ा, फूल वर्धक रस एवं कीटनाशक खुद तैयार करते हैं। साथ ही जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की जैविक उर्वरक इकाई से बैक्टीरियल खाद भी लेते हैं।
विनय सिंह रबी, खरीफ और जायद तीनों मौसम की प्रमुख फसलें जैसे गेहूं, चना, मसूर, अलसी, मूंग, उड़द, अरहर और मटर का उत्पादन लेते हैं। साथ ही साथ अपने डेयरी फार्म के लिए चारा फसलें जैसे नेपियर घास, बरसीम व उन्नत चरी भी लगा रहे हैं। उन्होंने वर्तमान में करीब 35 एकड़ में मटर लगाई है। यूँ तो 30 वर्षों से मटर लगा रहे हैं लेकिन पिछले 8-9 बर्षों से पूर्णतः जैविक विधि से मटर की फसल ले रहे हैं। इसके फलस्वरूप उन्हें गुणवत्ता के साथ-साथ अच्छा उत्पादन भी प्राप्त हो रहा है।
रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर दूसरे किसान जहां 25 से 30 क्विंटल मटर का उपत्पादन ले रहे हैं, वहीं जैविक विधि अपनाने की बदौलत विनय सिंह को करीब 40 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त हो रहा है। लागत कम होने के फलस्वरूप उन्हें बाजार में मटर कम कीमत के बावजूद उन्हें अच्छा लाभ भी हो रहा है। वे प्रति एकड़ लगभग 20 से 25 हजार रुपये की आय प्राप्त कर हैं। विनय सिंह बताते हैं कि जैविक विधि से उत्पादित मटर की फली का रंग, आकार व स्वाद बहुत अच्छा रहता है। इस वजह से बाजार में उनकी मटर की मांग भी अच्छी है।
उन्होंने बताया कि यदि दाम नहीं गिरते तो जैविक विधि से उत्पादित मटर से प्रति एकड़ 45 हजार रुपये तक का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। जबकि रासायनिक खेती से प्रति एकड़ अधिकतम 15 से 20 हजार रुपये तक का ही लाभ हो सकता है। कृषक विनय सिंह का कहना है किसी भी नजर से आंकलन किया जाये तो जैविक खेती से लागत कम व फायदा ज्यादा होता है। इससे कृषि भूमि का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और अधिक उर्वर बनी रहती है। इसके साथ ही प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण भी होता है।