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Friday, June 20, 2025

रबी फसलों की बोनी के लिए किसानों को सम सामयिक सलाह

रबी फसल की बुआई का समय प्रारंभ होने वाला है। जिले में रबी फसलों की बोनी अक्टूबर माह से दिसंम्बर तक की जाती है

जबलपुर, 29 सितम्बर, 2022

 किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने सम सामयिक सलाह में कहा है कि इस समय किसान को दो मुख्य बातों पर ध्यान देना चाहिए, पहला बीज तथा दूसरा उर्वरक। अगर बीज गुणवत्ता पूर्ण है और उर्वरक का प्रयोग समुचित नहीं है तो फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है।  इसलिए कृषक बन्धुओं को ध्यान रखना चाहिए कि कौन सी खाद, कब, किस विधि से एवं कितनी मात्रा में देना चाहिए।

उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास डॉ. एस.के. निगम के अनुसार गेंहू सिंचित हेतु अनुशंसित नत्रजन फास्फोरस पोटाश तत्व 120:60:40, सिंचित पछेती बोनी 80:40:30, असिंचित गेहूं 60:30:30 एवं चना हेतु एन.पी.के. 20:60:20+गंधक 20 कि.ग्रा. हेक्टेयर उपयोग में लाना चाहिए। प्रायः कृषक बंधु डी.ए.पी. एवं यूरिया का बहुतायत से प्रयोग करते है। डी.ए.पी. की बढ़ती मांग, उंचे रेट एवं मौके पर स्थानीय अनुपलब्धता से कृषकों को कई बार समस्या का सामना करना पड़ता है। परंतु यदि किसान डी.ए.पी. के स्थान पर अन्य उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, एन.पी.के.(12:32:16), एन.पी.के. (16:26:26) एन.पी.के. (14:35:14) एवं अमोनियम फास्फेट सल्फेट का प्रयोग स्वास्थ मृदा कार्ड की अनुशंसा के आधार पर करें तो वे इस समस्या से निजात पा सकते है। प्रायः कृषक नत्रजन फास्फोरस तो डी.ए.पी. एवं यूरिया के रूप में फसलों को प्रदाय करते है परंतु पोटाश उर्वरक का उपयोग खेतों में नही करते जिसमें कृषक की उपज में दानों में चमक व वजन कम होता है, और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को हानि होती है। उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने किसानों को सलाह दी है कि वे डी.ए.पी. के अन्य विकल्पों को क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुरूप प्रयोग करें। जहां डी.ए.पी. उर्वरक का प्रभाव भारी भूमि में अधिक प्रभावशाली होता है, वहीं एन.पी.के. उर्वरकों का प्रभाव हल्की भूमि में ज्यादा कारगर होता है। एस.एस.पी. के प्रयोग से भूमि की संरचना का सुधार होता है क्योकि इसमें कॉपर 19% एवं सल्फर 11% पाया जाता है। एस.एस.पी. पाउडर एवं दानेदार दोनों प्रकार का होता है। एस.एस.पी. पाउडर को खेत की तैयारी के समय प्रयोग किया जाता है। वहीं एस.एस.पी. दानेदार को बीज बोआई के समय बीज के नीचे दिया जा सकता है। 

डॉ. निगम ने कहा कि डी.ए.पी. में उपलब्ध 18% नत्रजन में से 15.5% नत्रजन अमोनिकल फार्म में एवं 46% फास्फोरस में से 39.5% पानी में घुलनशील फास्फोरस के रूप में मृदा को प्राप्त हो पाती है। शेष फास्फोरस जमीन में फिक्स हो जाने के कारण जमीन कठोर हो सकती है। इसी प्रकार इफको द्वारा नैनो तकनीक आधारित नैनो यूरिया (तरल) यूरिया के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न होने वाली समस्या के नियंत्रण के लिए बनाया गया है। सामान्यतः एक स्वस्थ पौधे में नत्रजन की मात्रा 1.5%.4% तक होती है फंसल विकास की विभिन्न अवस्थाओं में नैनो यूरिया (तरल) का पत्तियों पर छिडकाव करने से नाइट्रोजन की आवश्यकता प्रभावी तरीके से पूर्ण होती है एवं साधारण यूरिया की तुलना में अधिक एवं उत्तम गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त होता है। 

उपसंचालक डॉ. निगम के अनुसार अनुसंधान परिणामों में पाया गया है कि नैनो यूरिया (तरल) के प्रयोग द्वारा फसल उपज, बायोमास, मृदा स्वास्थ और पोषण गुणवत्ता के सुधार के साथ ही यूरिया की आवष्कता को 50% तक कम किया जा सकता है। नैनो यूरिया (500 मि.ली.) की एक बोतल कम से कम एक यूरिया बैग के बराकर होती है। जिसकी कीमत लगभग 240 रुपये प्रति 500 मिली. है। अतः कृषकों को नैनो यूरिया (तरल), एस.एस.पी. एवं एनी.पी.के. विभिन्न उर्वरकों की विकल्प के रूप में स्थानीय उपलब्धता, रेट का आंकलन कर प्रयोग न्यायसंगत प्रतीत होता है।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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