हजारों-हजार वर्षों तक मानव जीवन-परिधि का केंद्र बिन्दु गाय रही है। कृष्ण की वंशी की ध्वनि से पूरा का पूरा परिधि आप्लावित
सतना
यह संदेश लावारिस घूम रहे गौवंश के सवाल पर राजगुरु मनोज अग्निहोत्री ने दिए। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में जिसे पाप कहा जाता था, उसे आज प्रदूषण कहते हैं।बीफ का प्रचलन धड़ल्ले से बढ़ रहा है, जो भारतीय संस्कृति का अत्यंत ही घिनौना पहलू है।उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रचार-प्रसार ने अखाद्य और अप्रयोजनीय को प्रयोजनीय बना दिया। अनेक लेखकों ने गौवंश को अप्रयोजनीय बताते हुए कत्लखानों की ओर ढकेलने का प्रयास किया या तो अपने अध्ययन के बल से गौवंश के जीवन मे सुधार लाने का प्रयास।दूसरी ओर भारतीय गौवंश को समाप्त करने की सिफारिश करने वाले अर्थशास्त्रियों के नकारात्मक दृष्टिकोण के चलते आज चक्रव्यूह में फसा गौवंश अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।
*अनुपयोगी गौवंश भी आर्थिक इकाई*
राजगुरु ने कहा कि आज अनुपयोगी गौवंश से भी समग्र विकास की संरचना को संभव किया जा सकता है। गायों के गोबर और गौमूत्र से ऊर्जा का उत्पादन करना, गोबर से केंचुआ पालन एवं उपयोगी खाद तैयार करना, स्लरी खाद, नडेप कम्पोस्ट खाद बनाना, गौमूत्र से कीटनाशक दवाओं को तैयार करना तथा शैम्पू एवं साबुन तैयार करने का काम भी किया जा सकता है। जो प्रमाणित करता है कि अनुपयोगी गौवंश भी आर्थिक इकाई है। सतना जिले में गौ-अभ्यारण बना दिया जाए और उसे पंचायतों के प्रबंध शास्त्र से जोड़ दिया जाए तो यहां के किसानों, खेतिहर मजदूरों एवं बेरोजगारी से ग्रस्त युवकों के 70 प्रतिशत भाग में जीवन का नया सवेरा प्रारंभ हो जाएगा। आचार्य विनोबा भावे के गौरक्षार्थ बलिदान से राष्ट्र ऋण मुक्त हो जाएगा।खाली बैठा समूचा विटनरी एवं कृषि अमले को कार्य मिल जाएगा। वन, वनौषधियों से पुनः लहलहा जाएगा।