51 वर्ष बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बन सकते हैं मल्लिकार्जुन,सी. लाल
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बनना बिल्कुल तय हो चुका था।लेकिन गहलोत की सचिन पायलट से रार ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया।अन्यथा के.कामराज के बाद अशोक गहलोत दूसरे अतिपिछड़ी जाति के कांग्रेस के अध्यक्ष होते।अशोक गहलोत का नाम पीछे होते ही दिग्विजय सिंह का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए आया, और यह नाम गहलोत से काफी बेहतर था।लेकिन दूसरे ही दिन तस्वीर बिल्कुल बदल गयी।अचानक कर्नाटक कद दलित नेता,9 बार के विधायक व 2 बार के लोकसभा से सांसद व वर्तमान में राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आया तो जी-23 के नाराज सदस्य भी उनके साथ खड़े हो गए।अगर खड़गे अध्यक्ष पद का चुनाव जीतते हैं तो बाबू जगजीवन राम के बाद 51 वर्ष बाद कांग्रेस के दूसरे दलित वर्ग कद अध्यक्ष होंगे।वैसे इनका अध्यक्ष बनना तय हैं।बताते चले कि मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक सरकार में गृहमंत्री, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष, विधायक दल के नेता,केन्द्र सरकार में मंत्री,2009 से 2019 तक लोकसभा सांसद, लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी रह चुके हैं।जब से चुनाव लड़ना शुरू किए है,बस एक बार 2019 मे लोकसभा चुनाव में इन्हें हार मिली है।
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में नामांकन के आखिरी दिन गांधी परिवार के भरोसेमंद मल्लिकार्जुन खड़गे ने वाइल्ड कार्ड एंट्री मारी। गुरुवार देर रात तक सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के बीच नए अध्यक्ष को लेकर मीटिंग हुई, जिसके बाद शुक्रवार सुबह खड़गे को 10 जनपथ पर बुलाया गया था।
गांधी परिवार के बैकडोर सपोर्ट की वजह से खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। सब कुछ सही रहा तो मजदूर आंदोलन से कैरियर की शुरुआत करने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बनेंगे। जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
9 बार विधायक और 2 बार सांसद रह चुके 50 साल से ज्यादा समय से पॉलिटिक्स में सक्रिय खड़गे को 1969 में कर्नाटक के गुलबर्गा शहर अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी। खड़गे ने एक इंटरव्यू में बताया कि शुरुआत में वे पार्टी के प्रचार के लिए पर्चा खुद बांटते थे और स्लोगन दीवारों पर लिखते थे।
खड़गे 1972 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद वे 2008 तक लगातार 9 बार विधायक चुने जाते रहे। साल 2009 में पार्टी ने उन्हें गुलबर्गा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। इसके बाद वह लोकसभा पहुंचे। वह लगातार दो बार 2009 और 2014 में सांसद बने। खड़गे वर्तमान में राज्यसभा सांसद व प्रतिपक्ष के नेता हैं।मोदी लहर में जीत के बाद खड़गे का कद और बढ़ गया।
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 44 सीटों पर ही सिमट गई। मोदी लहर में पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए। ऐसे में कर्नाटक के गुलबर्ग से आने वाले खड़गे ने अपनी सीट बचा ली, जिसका उन्हें फायदा मिला। कांग्रेस ने लोकसभा में उन्हें पार्टी का नेता बनाया।2014 में करारी हार के बाद कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया।
दक्षिण भारत से होने के बावजूद खड़गे सदन में हिंदी में ही अपनी बातें रखते रहे। राहुल गांधी के उठाए गए राफेल से लेकर नोटबंदी तक के मुद्दों को खड़गे ने लोकसभा में बखूबी रखा, जिससे वे टीम राहुल में भी शामिल हो गए। हालांकि 2019 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन जल्द ही राज्यसभा के जरिए खड़गे ने सदन में एंट्री कर ली। बाद में पार्टी ने गुलाम नबी को हटाकर खड़गे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था।
खड़गे गांधी परिवार के नये संकटमोचक के रुप मे आगे आये।
2019 में महाराष्ट्र में जब धुर-विरोधी उद्धव के साथ सरकार बनाने की बात आई, तो पार्टी ने खड़गे को ही प्रभारी बनाकर वहां भेजा। खड़गे सोनिया के इस मिशन को वहां कामयाब करने में सफल रहे। इतना ही नहीं, जुलाई महीने में जब प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया-राहुल को पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाया था, उस वक्त संसद में विरोध का मोर्चा खड़गे ने ही संभाला।
2013 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद खड़गे मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे थे, लेकिन उन्हें केंद्र की पॉलिटिक्स में ही रहने के लिए कहा गया और उनकी जगह कुरूचा(अहीर-गड़ेरिया) पिछड़ी जाति के के. सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया गया। खड़गे उस वक्त मनमोहन कैबिनेट में श्रम विभाग के मंत्री थे, जिसके बाद उन्हें रेल मंत्रालय का जिम्मा दिया गया।मल्लिकार्जुन खड़गे 5 साल तक, यानी 2009 से 2014 तक मनमोहन कैबिनेट में मंत्री रहे।
राजनीतिक करियर में खड़गे का नाम 2 बड़े विवादों में आ चुका है। साल 2000 में कन्नड़ सुपरस्टार डॉ. राजकुमार का चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण कर लिया था। उस वक्त खड़गे प्रदेश के गृह मंत्री थे, जिसके बाद विपक्ष ने उनकी भूमिका पर सवाल उठाया।वहीं इसी साल नेशनल हेराल्ड केस में ईडी ने उनसे पूछताछ की थी। हेराल्ड केस में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। हालांकि अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
मल्लिकार्जुन खड़गे के परिवार में पत्नी राधाबाई के अलावा तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनका एक बेटा कर्नाटक के बेंगलुरु में स्पर्श हॉस्पिटल का मालिक है, जबकि दूसरा बेटा प्रियांक विधायक है। 2019 चुनाव के दौरान खड़गे ने अपनी संपत्ति करीब 10 करोड़ बताई थी।
*पंजाब के यूपी में दलित कॉर्ड*
दलितों की बड़ी आबादी को देखते हुए कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने दलित चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था,लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई लाभ नहीं हुआ।पंजाब का दलित थोक में आम आदमी पार्टी के साथ चला गया।देर आये दुरुस्त आये के पैटर्न पर अब कांग्रेस में बदलाव आता दिख रहा है।कांग्रेस के 2 मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल(कुर्मी) व राजस्थान के अशोक गहलोत(माली) पिछड़ी जाति के ही हैं।उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बसपा के पूर्व सांसद बृजलाल खाबड़ी को बनाया गया है।जो दलित बिरादरी के हैं।प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में 2 ब्राह्मण,2 उच्च पिछड़े(यादव,कुर्मी),एक भूमिहार ब्राह्मण व मुस्लिम हैं।प्रांतीय अध्यक्ष बनाये गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी व नकुल दुबे बसपा सरकार में मंत्री व मायावती के करीबियों में शामिल रहे हैं।अजय राय(वाराणसी),विधायक वीरेंद्र चौधरी(महराजगंज),अनिल यादव(इटावा),नकुल दुबे(लखनऊ),योगेश दीक्षित(कानपुर),नसीमुद्दीन सिद्दीकी(बाँदा) कांग्रेस के प्रांत अध्यक्ष बनाये गए हैं।कांग्रेस ने दलित कॉर्ड खेलते व सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने के प्रयास के बाद भी अतिपिछड़ों को खारिज़ करके ही चल रही है।ऊपर से नीचे तक अतिपिछड़ी जातियों को कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है।उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखण्ड,गुजरात,महाराष्ट्र,कर्नाटक,तेलंगाना, गोआ,आंध्रप्रदेश,मध्यप्रदेश में 32 प्रतिशत से अधिक आबादी अतिपिछडों की है।भाजपा आज जो शीर्ष स्थान पर पहुँची है,उसमे इन्हीं अतिपिछड़ी जातियों का ही योगदान है।कांग्रेस दलितों के साथ साथ अतिपिछड़ों पिछडों,पसमांदा को साध कर नहीं चली तो अभी कांग्रेस राह आसान नहीं।उत्तर प्रदेश में 2009 के लोकसभा चुनाव में किसान ऋण माँफी के मुद्दे पर किसान व आरक्षण के मुद्दे पर निषाद, बिन्द, कश्यप जातियाँ कांग्रेस के साथ आईं थी।लेकिन कांग्रेस अतिपिछड़ों को गम्भीरता से लेती नहीं दिख रही।