26.8 C
Jabalpur
Friday, June 20, 2025

खड़गे व खाबड़ी को आगे कर दलित वोट साधने में जुटी कांग्रेस

अतिपिछड़ी जातियां कांग्रेस के एजेंडे में नहीं

(राजेन्द्र सिंह)
कांग्रेस पार्टी अब अपने चाल,चेहरे व चरित्र में बदलाव लाती दिख तो रही है,पर अभी भी भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग व माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग से कोसों दूर है।भाजपा जो फर्श से अर्श(शीर्ष) पर पहुँची है,उसमें अतिपिछड़ी जातियों की अहम भूमिका है।कांग्रेस, सपा,बसपा आदि मध्यमार्गी दलों से उपेक्षित अतिपिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ मजबूती से शिफ्ट हो गया।भारतीय जाति व्यवस्था का अतिपिछड़ा वर्ग(ईबीसी/एमबीसी) एक ऐसा जातीय समूह है,जिसकी आबादी कुल आबादी में 30 फीसद से अधिक है।उत्तर भारत के तीन प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश, बिहार में अतिपिछड़ी जातियों की आबादी 32 से 38 फीसद है,पर अमूमन राजनीतिक रूप से उपेक्षित पड़ा हुआ था।इसी उपेक्षित वर्ग पर भाजपा ने सवर्ण जातियों के बाद विशेष फोकस किया।बिहार में सवर्ण जातियाँ 13-15 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 15-16 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 8-9 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 4-5 प्रतिशत, गुजरात में 5-6 प्रतिशत सवर्ण(ब्राह्मण-क्षत्रिय-बनिया),12-14 प्रतिशत पाटीदार सामान्य वर्ग व राजस्थान में 11-12 सवर्ण जातियाँ हैं।उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है,जहाँ लोकसभा की 80 सीटें हैं और यहाँ सामाजिक न्याय आधारित सपा व बसपा के अलावा निषादों की निषाद पार्टी,राजभरों की सुभासपा, कुर्मियों की अपना दल एस व कमेरवादी,कोयरियों की जन अधिकार पार्टी आदि जैसे जाति आधारित दल हैं।भाजपा की सफलता का मुख्य कारण अतिपिछड़ों,अतिदलितों के बड़े भाग को अपने पाले में करना व ओबीसी वोटों का बिखराव है।
कांग्रेस पार्टी में इधर कुछ वर्षों से उसके वैचारिकी व चाल-चलन में बदलाव आया है।इस समय उसके पास 2 राज्यों में सरकार है और दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री ओबीसी हैं,छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल(कुर्मी) व राजस्थान के अशोक गहलोत(माली) हैं।इससे पहले कांग्रेस ने कर्नाटक में सिद्धारमैया(पिछड़ी जाति कुरुबा-अहीर,गड़ेरिया) को मुख्यमंत्री बनाकर सामाजिक न्याय की राह पर चलने की शुरुआत किया।पंजाब में दलित जाटव जाति के चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित कॉर्ड खेला,परन्तु विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिला।पंजाब चुनाव में जाटव एकतरफा आम आदमी पार्टी के साथ चले गए।कांग्रेस कर्नाटक के दिग्गज दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए आगे किया है।अशोक गहलोत का कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय था,लेकिन इनकी अति महत्वाकांक्षा ने इनकी आशाओं पर पानी फेर दिया।कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अशोक गहलोत को अपना अतिविश्वसनीय मानता था,पर सचिन पायलट के विरोध में ये गाँधी परिवार को ही आँख दिखाने लगे।जिससे इनका पत्ता काट दिया गया।कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह से होते हुए दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए आगे कर दिया,जिनका चुनाव जीतना लगभग तय हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर कर दलित कॉर्ड खेला है।कांग्रेस के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब कोई दलित कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व करेगा।इससे पहले 51 वर्ष पूर्व बाबू जगजीवन राम कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे।देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष कभी मायावती के अति निकटस्थ पूर्व लोकसभा व राज्यसभा सांसद बृजलाल खाबड़ी(जालौन) को बनाया है।क्या बृजलाल खाबड़ी बसपा के परम्परागत चमार/जाटव वोटबैंक में सेंधमारी कर कांग्रेस के साथ जोड़ पायेंगे?यह भविष्य के गर्भ में है।बृजलाल खाबड़ी को अध्यक्ष बनाने के पीछे कांग्रेस की राजनीतिक सोच रही है कि इनके बुंदेलखंड क्षेत्र से होने के नाते अगले वर्ष होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में दलित जातियों का कांग्रेस के साथ ध्रुवीकरण होगा।लेकिन सच्चाई यह है कि दक्षिण भारत में दलित जातियों का कुछ हिस्सा कांग्रेस को मिल जाता है।लेकिन उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के राज्यों में खड़गे व खाबड़ी दलित वोटबैंक में सेंधमारी नहीं कर पाएंगे?जाटव/चमार जाति किसी भी परिस्थिति में मायावती का साथ छोड़ने की स्थिति में नहीं है।विधानसभा चुनाव-2022 में बसपा को जो 12 प्रतिशत वोट शेयर मिला,उसमें 80 प्रतिशत हिस्सा जाटव वोट का ही था।उत्तर प्रदेश में 20-21 प्रतिशत दलित जनसंख्या में लगभग 12 प्रतिशत जाटव/चमार हैं।जो बसपा के परम्परागत वोटर हैं। 3-4 प्रतिशत पासी,लगभग 1.25-1.25 प्रतिशत धोबी व कोरी हैं।गैर जाटव दलित जातियों का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष दलित को बनाया गया है,वही दबंग पिछड़ी जातियों से विधायक वीरेंद्र चौधरी(कुर्मी) व अनिल यादव,ब्राह्मण जाति के नकुल दूबे, योगेश दीक्षित,भूमिहार ब्राह्मण जाति के अजय राय व अल्पसंख्यक समुदाय से नसीमुद्दीन सिद्दीकी को प्रान्त अध्यक्ष/क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाये गए हैं।बृजलाल खाबड़ी सहित नकुल दूबे व नसीमुद्दीन सिद्दीकी कभी मायावती के करीबियों में शामिल रहे हैं।कुर्मी जाति की बात की जाय तो यह भाजपा व अपना दल के साथ खड़ी है और यादव बिरादरी सपा को छोड़ने की स्थिति में नहीं दिख रहा।कांग्रेस नेतृत्व ने सोशल इंजीनियरिंग को साधने का प्रयास तो किया,लेकिन जो वर्ग आसानी से कांग्रेस के साथ जुड़ सकता था,उस अतिपिछड़े वर्ग को सिरे से खारिज कर दिया गया।उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में अतिपिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी की एक तिहाई से अधिक है।
उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में लगभग 9 फीसद यादव व 4 फीसद कुर्मी पटेल हैं।पिछड़ों में सबसे बड़ा जातीय समूह निषाद मछुआरा(मल्लाह,केवट,बिन्द, कश्यप,माँझी,धीवर,रैकवार आदि) का है,जो 10 फीसद से अधिक है और यह प्रदेश के हर क्षेत्र में बसा है।लगभग 5 प्रतिशत की आबादी मौर्य, कोयरी,काछी, कुशवाहा,माली, सैनी,शाक्य की है,वही लोधी,किसान,खागी लगभग 4 प्रतिशत है। अतिपिछड़ी जातियों में सुमार विश्वकर्मा(बढ़ई, लोहार) 1.70 प्रतिशत, नाई 1.10 प्रतिशत, पाल/गड़ेरिया/बघेल 2.40 प्रतिशत,कुम्हार/प्रजापति 1.80 प्रतिशत,साहू 1.60 प्रतिशत, राजभर 130 प्रतिशत व नोनिया/चौहान 1.25 प्रतिशत हैं।दबंग पिछड़ी जातियों में जाट लगभग 2 प्रतिशत व गुजर 0.70 प्रतिशत हैं।अन्य पिछड़ी जातियाँ बारी, बरई,कानू, भुर्जी,बंजारा,नायक,बियार,सोनार,कसेरा,ठठेरा,अर्कवंशी, गिरी/गोसाई,कंडेरा आदि भी पंचफोरन वाली जातियाँ हैं।
सामाजिक न्याय चिन्तक व कांग्रेस पार्टी के नेता लौटनराम निषाद से कांग्रेस पार्टी में अतिपिछड़ी जातियों के स्थान के बारे में पूछने पर बताया कि अब कांग्रेस सामाजिक न्याय व सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे पर आगे बढ़ रही है।निकट भविष्य में अतिपिछड़ी जातियों को संगठन व अन्य स्तरों पर प्रतिनिधित्व देने का कदम उठाया जाएगा।उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में किसी अतिपिछड़े को प्रान्त अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था।कहा कि 1985 तक अतिपिछड़ी जातियाँ कांग्रेस की मजबूत आधार थीं।लेकिन सामाजिक न्याय आधारित दलों के उभार व मण्डल आंदोलन के बाद कांग्रेस से दूर होती चली गईं।निषाद ने बताया कि किसान ऋण माँफी व निषाद जातियों के अनुसूचित जाति आरक्षण के मुद्दे पर लोकसभा चुनाव-2009 में कुर्मी,लोधी व निषाद, कश्यप जातियों ने कांग्रेस का साथ दीं, लेकिन कांग्रेस इन्हें जोड़े नहीं रख सकी।देश मे निषाद मछुआरा एक बहुत बड़ा जातीय समूह है और हर राज्यों में इनकी उपस्थिति है,पर कांग्रेस के किसी महत्वपूर्ण पद व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में एक भी मछुआरा निषाद पदाधिकारी नहीं है और न ही कोई अतिपिछड़ा।
वर्तमान राजनीतिक दौर में सवर्ण जातियाँ भाजपा से दूर होने की स्थिति में नहीं हैं,उसी तरह यादव सपा व जाटव बसपा से दूर नहीं हो सकता।कांग्रेस ने उदयपुर नव संकल्प चिंतन शिविर में 50 प्रतिशत पड़ पिछड़ों, दलितों को देने का निर्णय लिया था।इसके ठीक बाद राज्यसभा के चुनाव हुआ।भाजपा ने 243 में 11 ओबीसी/एमबीसी व 3 दलितों को राज्यसभा में भेजा,वही कांग्रेस ने 10 में 5 ब्राह्मण,2 सामान्य व 1-1 मुस्लिम,बनिया व दलित को भेजा,इसे कोई पिछड़ा राज्यसभा में जाने योग्य नहीं दिखा।देश की कुल आबादी में 55-60 प्रतिशत पिछडों की आबादी है।कांग्रेस ही नहीं सपा,बसपा,राजद से कहीं बेहतर सोशल इंजीनियरिंग को भाजपा अख्तियार कर रही है।कांग्रेस की स्थिति सुधर सकती है,लेकिन उसे एआईसीसी, पीसीसी में पिछड़ों, अतिपिछड़ों को नुमाइंदगी देनी होगी,वंचित वर्गों के सामाजिक न्याय के मुद्दों को एजेंडे में प्रमुखता से शामिल कर लड़ना व उठाना होगा।

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

Latest News

Stay Connected

0FansLike
24FollowersFollow
0FollowersFollow
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Most View