जबलपुर ग्रामीण की पाटन विधानसभा में चुनावी गर्माहट जोर पर है भांडेर की पर्वत की तलहटी में फैली पाटन विधानसभा क्षेत्र का अलग ही इतिहास रहा है।
मझौली- (जबलपुर)।
आजादी के 45 सालों तक यहां कांग्रेस का वर्चस्व रहा है हालांकि इस क्षेत्र में स्थानीय नेताओं के अलावा बाहरी प्रत्याशियों का ज्यादा हस्तक्षेप रहा है और उन प्रत्याशियों का लंबे समय तक राजनीतिक कब्जा भी हुए जातीय समीकरण के हिसाब रहा है किंतु 1993 के चुनाव में क्षेत्र से का मिजाज बदला और भाजपा के लिए युवा वर्ग के प्रत्याशी पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने कांग्रेस के तंबू उतारा को उखाड़ फेंका तब उन्होंने अपने निकटतम प्रत्याशी कल्याणी पांडे को हराया था।
1998 के चुनाव में समीकरण पुनः भाजपा के विरुद्ध हो गए उस समय भाजपा की प्रत्याशी प्रतिभा सिंह, कांग्रेस के रघुराज सिंह एवं सोबरन सिंह के बीच की त्रिकोणीय संघर्ष था जिसमें बाबू पुनः सोबरन सिंह ने अपनी मेहनत से चुनाव जीत हासिल की तथा भाजपा और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा चरगवां सन 2003 के चुनाव में भाजपा ने हटाकर चुनावी रणनीति में बदलाव करते शामिल
चुनाव लड़ा भाजपा ने इसके युवा नेता नूनसर निवासी नारायण सिंह चौधरी को चुनाव में किंतु उस समय भाजपा कार्यकर्ताओं को कई गुटों में विभाजित होने से जातीय समीकरण गड़बड़ा गया और आंतरिक विरोध के चलते हार हो गई और भाजपा पराजित हुई इस बार फिर बाबू सोबरन सिंह की लोकप्रियता के चलते उन्होंने जीत हासिल की। 2008 में पाटन विधानसभा ही बदल गया इस क्षेत्र से , बेलखेड़ा, शाहपुरा को कटंगी एवं मझौली को किया गया और चुनाव के
सारे गणित बदल गए। कटंगी, मझौली के मिलने से भाजपा को उम्मीद जगी और पूर्व मंत्री अजय बिश्नोई का क्षेत्र में खासी पकड़ का लाभ मिला।
यह चुनाव भाजपा व कांग्रेस की प्रतिष्ठा का चुनाव था। उस समय भाजपा के नेता व मंत्री अजय बिश्नोई को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने युवा प्रत्याशी विक्रम सिंह को चुनाव में उतारा किंतु अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद एवं 51000 वोट प्राप्त करने के बाद भी श्री विश्नोई को हरा नहीं पाए श्री बिश्नोई ने लगभग 12000 वोट से जीत दर्ज की। 2008 के बाद श्री विश्नोई की राजनीतिक पकड़ कम होती गई फल स्वरुप तमाम गुटों के चलते
इस बार क्या होगा.
पाटन विधानसभा में कांटे की टक्कर
चुनाव में मात्र कुछ ही दिन शेष बचे हैं एक बार फिर भाजपा ने इस चुनाव में अपने विधायक अजय विश्नोई को मैदान में उतारा है। और कांग्रेस ने भी उन्हें टक्कर देने के लिए एक बार फिर अपने प्रत्याशी पूर्व विधायक निलेश अवस्थी को मैदान में उतारा है दोनों की अच्छी खासी लोकप्रियता क्षेत्र में देखी जा रही है दोनों ही पार्टियों में कांटे की टक्कर है। कांग्रेस एक बार फिर पुरजोर मेहनत कर रही है और पार्टी में कोई आंतरिक विरोध भी नहीं दिख रहा जिसका लाभ भी कांग्रेस को हो सकता है। अन्य पार्टियां भी अपने प्रचार प्रसार में लगी हैं लेकिन यह भी देखना है कि यह परिणाम में कितना प्रभाव डाल पातीं हैं। अब देखना यह है की कट किस करवट बैठता है।
2018 का चुनाव
कार्यकर्ता निराश और हताश होने लगे । स्थानीय निकाय एवं निकाय पंचायत के चुनाव में भी भाजपा को हार की धूल का मुंह देखना पड़ा परिणाम स्वरूप 2013 का चुनाव एक तरफा हो गया और कांग्रेस ने जातीय समीकरण का सहारा लिया और अपने प्रत्याशी नीलेश अवस्थी को मैदान में उतारा/यद्यपि श्री अवस्थी की इस क्षेत्र में इतनी पकड़ नहीं थी किंतु भाजपा में आंतरिक विरोध के चलते एवं कार्यकर्ताओं की खींचतान के कारण कांग्रेस को सफलता मिली और श्री बिश्नोई को अपनी परंपरागत सीट से हाथ धोना पड़ा और लगभग 12000 वोटो से हार झेलनी पड़ी और अवस्थी जी को लगभग 83000 वोट मिले और जीत दर्ज की।
2018 के चुनाव में कांग्रेस के अवस्थी जी का अच्छा बोल वाला था और श्री बिश्नोई भी 5 साल से लगभग इस विधानसभा से दूरी बनाए हुए थे परंतु उन्होंने इस क्षेत्र में वापसी करते हुए अपने राजनीतिक कौशल से क्षेत्र में पुनः अपना दबदबा बनाया और लगभग 27000 वोटों से अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी के नीलेश अवस्थी को चुनाव में पराजित किया। हालांकि इस चुनाव में भाजपा में कोई गुटबाजी या कार्यकर्ताओं में कोई खींचतान नहीं थी जिसका पूरा फायदा श्री विश्नोई को मिला और उन्हें लगभग 100000 वोट. प्राप्त हुई और नीलेश अवस्थी को लगभग 73000 वोट से संतोष करना पढ़ा था।