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Friday, June 20, 2025

माझियों के साथ छल कर रही है भाजपा

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के वर्ष 2008 व 2013 के चुनावी घोषणा पत्र ( जन संकल्प पत्र ) को देखेंगे तो उनमें विशेष रूप से माझी के पर्याय नामों को जनजाति की सुविधाएं दिलाने सहित समाज के लिए अन्य लाभ दिए जाने की बातें लिखी जाती रही हैं

मध्यप्रदेश 

अमर नोरिया ( पत्रकार )
नरसिंहपुर

बड़ी बात यह कि मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा आयोजित मछुआ पंचायत में मंत्री मण्डल के सदस्यों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में हजारों माझियों के बीच जो घोषणाएं की गई हैं वह भी लगभग 1 दशक बीत जाने के बाद पूरी नहीं हुई हैं राजनीतिक स्तर से मछुआरों के नाम पर प्रकोष्ठ संचालन किये जा रहे हैं, वावजूद इसके मछुआ सहकारी समितियों के चुनाव ही प्रदेश में वर्षों से नहीं हुए हैं इतना सब देखने सुनने के बाद लगता है कि मध्यप्रदेश का माझी समाज भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक कुचक्र में फंस गया है जिसके चलते 14 जून 1992 में जबलपुर में आयोजित हुए माझी कुम्भ के आज 31 वर्ष बाद न तो माझी के पर्याय नामों को जनजाति की सुविधाएं मिली और न ही हमारे लोगों को तालाब और रेतवाड़ी के पट्टे दिए जाने की जो बातें की गई थीं वह पूर्ण हुई ।*

मध्यप्रदेश में हम लोग पिछले 30-32 वर्ष से माझी जनजाति के संवैधानिक हक और अधिकार की मांग करते हुए लगातार संघर्ष कर रहे हैं किंतु इतना सब होने के बाद भी हमारे समाज के लोगों को सत्ताधीशों की नीतियों ने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से पिछड़ेपन की कगार पर लाकर रख दिया है  जिसकी वजह से मध्यप्रदेश में ग्राम पंचायतों से लेकर जिला पंचायत, विधानसभा और संसद में हमारी उपस्थिति न के बराबर है । वर्ष 2012 में आयोजित  मछुआ पंचायत में स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री के द्वारा रेतवाड़ी के पट्टे दिए जाने की घोषणा और आदेश जारी होने के बाद भी रेतवाड़ी के पट्टे न दिया जाना हमारे साथ बड़ा धोखा है । हमारे वंशानुगत रोजी रोजगार से अलग करने की प्रक्रिया भी लगातार जारी है हमारे समाज के लोग भी अच्छी तरह से जानते हैं कि सब ने हमारे वोट बैंक का इस्तेमाल किया है,आज माझी समाजजनों की जो हालत है वह किसी से छुपी नहीं है।  मत्स्याखेट कर अपनी जीविका चलाने वाले मछुआरों को ठेकेदारी प्रथा से भारी नुकसान पहुंचा है । राजनीतिक दल हमें केवल वोट बैंक के रूप में जिस तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं इसके लिए व्यापक तौर पर जन जागरण अभियान की आवश्यकता है पिछले सालों में हमारे वरिष्ठ व युवा साथी लगातार इस मुहिम में लगे हुए हैं,अब समय आ गया है कि समाज के वंशानुगत रोजी रोजगार, पंचायतों में खोदे गए तालाब, नदी तटों की भूमि जिस पर हम खेती कर अपने जीवन यापन करते रहे उसके कब्जे और पट्टे को लेकर व्यापक स्तर पर मुहिम चलाएं सरकार रेत खनन के ठेके देकर एक तयशुदा खनन क्षेत्र में खनन करवा रही है किंतु उसके अलावा जिस तरह से अन्य जगह से नदी तटों की रेत निकाली जा रही है उसका नुकसान हमारे समाज के लोगों को हो रहा है नदी तटों और नदी के प्राकृतिक स्वरूप को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया जा रहा है वह हमारी रोजी-रोटी पर सीधा सीधा प्रहार है हमें समझना होगा और अपने हक और अधिकार के लिए राजनीतिक रूप से और सशक्त होना होगा हम इस मुहिम में गांव-गांव इस संदेश को पहुंचाएं कि हमें सरकार की योजनाओं का लाभ लेने पात्र लोगों को बीपीएल कार्ड,पेंशन और अन्य सुविधाओं सहित अपने वंशानुगत रोजगार, रेतबाड़ी के पट्टे, नदी तालाबों से निकली भूमि और तरबूज खरबूज ( डंगरा / कलिंदे ) की खेती के जो स्थान है वह हमें अपने हक और अधिकार में लेने होंगे और अगर हमें यह नहीं मिल रहे हैं तो हमें व्यापक स्तर पर इसके लिए राजनीतिक रूप से एकजुट होना होगा और हम इसके लिए सभी आगे आयें इसके लिए हमें राजनीतिक रूप से एकजुट होना पड़ेगा, हमें राजनीतिक एकजुटता और अपने वोटबैंक का उपयोग अपने हक और अधिकारों के लिये करना होगा …

सुंदरलाल बर्मनhttps://majholidarpan.com/
Sundar Lal barman (41 years) is the editor of MajholiDarpan.com. He has approximately 10 years of experience in the publishing and newspaper business and has been a part of the organization for the same number of years. He is responsible for our long-term vision and monitoring our Company’s performance and devising the overall business plans. Under his Dynamic leadership with a clear future vision, the company has progressed to become one of Hindi e-newspaper , with Jabalpur district.

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