राजनीति अब बेजुबान जानवरों को भी नहीं बख्श रही..कूनो नेशनल पार्क में फिर दो चीता शावकों की मौत हो गई है
दिल्ली
आज मादा चीता ‘ज्वाला’ के दो और शावकों की जान चली गई। इससे पहले मंगलवार को उसके एक शावक ने दम तोड़ा था। वहीं चौथे शावक की हालत भी गंभीर बनी हुई है। इसी के साथ पिछले दो महीने में 6 चीतों की मौत हो गई है जिनमें तीन वयस्क और तीन शावक शामिल हैं। सबसे पहले 26 मार्च को मादा चीता ‘साशा’ की मौत हुई। फिर 23 अप्रैल को चीता ‘उदय’, 9 मई मादा चीता ‘दक्षा’, 23 मई को ज्वाला के एक शावक और 25 मई को ज्वाला चीता के दो और शावकों की मौत हो गई।
पीढ़ियों से कहीं और बसे हुए चीतों को जब ढोल ढमाकों के साथ भारत लाया गया तो तमाम दावे किए गए। मध्य प्रदेश में कहा गया कि ‘टाइगर स्टेट’ अब ‘चीता स्टेट’ भी बन गया है। लेकिन सारे दावे कुछ ही वक्त में धराशायी भी हो गए। और ये होना संभावित भी था क्योंकि सालों से एक जगह बसे हुए जानवरों को जब बिना किसी वाजिब कारण के निर्वासित कर एकदम नए माहौल में, नई जलवायु में लाया जाएगा..तो ज़ाहिर तौर पर उनके सर्वाइवल पर खतरा तो मंडराएगा ही। ये बात बेजुबान जानवर तो कह नहीं सकते थे और वो इस राजनीति का शिकार हो गए। चीतों को भारत लाना..शायद नेताओं के लिए एक पॉलिटिकल स्टंट हो सकता है क्योंकि इसके जरिए वो अपने खाते में एक और उपलब्धि जुड़वा सकते हैं…लेकिन अब प्रोजेक्ट की नाकामी की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा ?
गुरुवार को कूनो राष्ट्रीय उद्यान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के हवाले से बताया गया है कि 23 मई को ‘ज्वाला’ के एक शावक की मृत्यु हुई थी। उसके बाद से ही बचे हुए 3 शावकों और उनकी मां की पालपुर में तैनात वन्यप्राणी चिकित्सकों की टीम एवं मॉनिटरिंग टीम द्वारा दिनभर लगातार निगरानी की गई। एक शावक की मृत्यु के बाद दिन के समय चीता ज्वाला को सप्लीमेंट फूड दिया गया। दोपहर बाद निगरानी के दौरान टीम ने पाया कि बाकी तीनों शावकों की स्थिति भी सामान्य नहीं है। तीनों शावकों की असामान्य स्थिति और भयंकर गर्मी को देखते हुए प्रबंधन एवं वन्यप्राणी चिकित्सकों की टीम ने तुरंत उन्हें रेस्क्यू कर आवश्यक उपचार करने का निर्णय लिया।