किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों से गेहूं फसल की कटाई के बाद नरवाई (भूसे) को आग लगाकर नष्ट नहीं करने की अपील की है।
जबलपुर
साथ ही किसानों को रोटावेटर चलाकर बारीक हुई नरवाई को मिट्टी में मिलाकर जैविक खाद तैयार करने की सलाह दी गई है। किसानों से कहा गया है कि वे नरवाई को बिना हटाये जीरो टिल सीड ड्रिल से जायद फसल मूंग, उड़द, तिल आदि की बोनी भी कर सकते हैं।
उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी के अनुसार जिले में लगभग 1 लाख 90 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आच्छादित गेहूं रबी की प्रमुख फसल है। किसानों द्वारा मार्च के चौथे सप्ताह से इसकी कटाई कर शेष बची नरवाई को आग लगाकर नष्ट कर दिया जाता है, जिससे कृषि को नुकसान होता है।
उन्होंने बताया कि नरवाई में लगभग 0.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.6 प्रतिशत सल्फर एवं 0.8 प्रतिशत पोटाश उपस्थित होता है। एक हेक्टेयर भूमि में 40 क्विंटल गेहूं के उत्पादन पर नरवाई की 60 क्विंटल मात्रा प्राप्त होती है। इस नरवाई में नाइट्रोजन की 30 किलो, सल्फर की 36 किलो, पोटाश की 90 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। वर्तमान में जिसका मूल्य लगभग 300 रूपये प्रति किलो होता है। जो जलकर नष्ट हो जाता है।
श्री आम्रवंशी ने कहा कि गेहूं फसल की कटाई के बाद नरवाई को जलाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते है। सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने से जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है। क्षेत्र में आग के प्रभाव से भूमि कठोर हो जाती है एवं उसकी जल धारण क्षमता कम हो जाती है। फसलें भी जल्द ही सूखने लगती हैं एवं पर्यावरण प्रदूषित होता है। इसके साथ ही तापमान में वृद्धि होती है एवं कार्बन, नाइट्रोजन तथा फास्फोरस के अनुपात में कमी होने के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।