बुंदेलखंड का गंगासागर चित्रकूट का ऐसा मंदिर जहां भगवान महादेव ने अपनी आज्ञा से श्री राम एवं लक्ष्मण को लिया था बांध
भगवान शिव के स्वरूप मत्यगजेंद्र को चित्रकूट का क्षेत्रपाल कहा जाता है, इसलिए बिना इनके दर्शन के चित्रकूट की यात्रा फलित नहीं होती
बुंदेलखंड का गंगासागर चित्रकूट में मौजूद एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी कथा अत्यंत अनोखी है l इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ शिवलिंग रूप में विराजमान हैं l विशेष बात ये है कि यहां महादेव के एक नहीं दो नहीं अपितु चार शिवलिंगों की पूजा की जाती है l इस मंदिर में भगवान शिव के साथ श्री राम और लक्ष्मण भी विराजित हैं l ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर का प्रभु श्री राम से नाता l
चित्रकूट को भगवान श्री राम की तपोस्थली माना जाता है l इसी स्थान पर स्थापित है मत्यगजेंद्र मंदिर, जहां इन दिनों भक्तों का ताता लगा हुआ है l भक्तों की भीड़ और राम नाम से ये महादेव मंदिर गूँज उठा है l इस मंदिर के आस पास कई पवित्र नदियाँ हैं और खासतौर पर मंदाकिनी नदी का प्रवाह है, इसी पवित्र पावनी मंदाकिनी नदी के जल से इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का अभिषेक होता है l
*कौन हैं मत्यगजेंद्र भगवान ?*
ये मंदिर पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे रामघाट पर स्थित है l भगवान शिव के स्वरूप मत्यगजेंद्र को चित्रकूट का क्षेत्रपाल कहा जाता है, इसलिए बिना इनके दर्शन के चित्रकूट की यात्रा फलित नहीं होती है l मत्यगजेंद्र का अपभ्रंश के कारण मत्तगजेंद्र नाम भी प्रचलित है l
*लक्ष्मण को दिए इस अनूठे रूप में दर्शन*
त्रेता काल में भगवान श्रीराम, माता जानकी और भाई लक्ष्मण के साथ जब वनवास काटने चित्रकूट आए तो उन्होंने क्षेत्रपाल मत्यगजेंद्र से आज्ञा लेना उचित समझा l स्थानीय संत ऋषि केशवानंद जी कहते हैं कि श्रीराम ने लक्ष्मण को मत्यगजेंद्र नाथजी से निवास की आज्ञा के लिए आगे भेजा, जहां लक्ष्मण के सामने वो दिगंबर स्वरूप में प्रकट हुए l
*भगवान राम और लक्ष्मण ने मत्यगजेंद्र की सीख का किया पालन*
मत्यगजेंद्र एक हाथ गुप्तांग और दूसरा हाथ मुख पर रखकर नृत्य करने लगे l ये देखकर लक्ष्मण ने श्रीराम से इसका अर्थ पूछा, श्रीराम ने इसका अर्थ बताया कि ब्रह्मचर्य पालन करने और वाणी पर संयम रखने के संकेत है l दोनों भाइयों ने पूरे वनवास काल में मत्यगजेंद्र की दी गई सीख का पालन किया और 14 में से साढ़े 11 वर्ष चित्रकूट में ही रहे l
*शिवपुराण में मंदिर का है उल्लेख*
ये मंदिर बहुत ही प्राचीन है, मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं ब्रह्मा ने की है l शिवपुराण में भी इसका उल्लेख है l
ब्रह्मा ने 108 कुंडीय किया था l जिसके बाद भगवान शिव का मत्यगजेंद्र स्वरूप लिंग के रूप में प्रकट हुआ l उसी लिंग को इस मंदिर में स्थापित किया गया है l विशेष बात ये है कि इस मंदिर में चार शिवलिंग हैं, ऐसा विश्व में कहीं और होने का वर्णन नहीं है l इस मामले में अनोखा मंदिर है इस मंदिर में भक्तों का जमावड़ा लगता है, देश-विदेश के शिव भक्त यहां जुटते हैं l हालांकि, मंदिर की जितनी मान्यता है उस हिसाब से प्रशासन की तरफ से मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए खर्च नहीं किया गया है l अगर सरकारी सहायता मिल जाए तो ये मंदिर भी तीर्थयात्रियों के आकर्षण का बड़ा केंद्र बन सकता है l