राजनीतिक दलों की नीति और नीयत देखते हुए निषादवंशियों को भी जागरूक करना होगा
भोपाल
✍🏾 अमर नोरिया ( पत्रकार )
नरसिंहपुर
14 जून 1992 को जबलपुर में आयोजित हुए माझी कुंभ में प्रदेश के लाखों निषादवंशीय माझियों के सामने माझी के पर्याय नामों को जनजाति की सुविधाएं दिए जाने की घोषणा करने के बाद वर्ष 2008 और वर्ष 2012 में जबलपुर व भोपाल में आयोजित की गई माझी मछुआ पंचायत में माझी समाज के वंशानुगत रोजगार में विभिन्न सुविधाएं देने सहित आरक्षण को लेकर केंद्र स्तर तक जाने की घोषणा सहित मत्स्य पालन नीति 2008 का अब तक अक्षरशः पालन न किये जाने और 2008 व 2013 के चुनावी जनसँकल्प पत्र (घोषणापत्रों) में इस बात का उल्लेख किये जाने के बाद भी लगभग 31- 32 वर्षों से अगर हमारा समाज भाजपा की वादाखिलाफी के बाद भी अगर आजतक भाजपा का समर्थन कर रहा है और भाजपा से जुड़े संगठनों में समाज सहभागिता कर रहा है तो इस पर विचार करने की आवश्यकता है । क्योंकि 31- 32 साल के लंबे आश्वासन घोषणा के बाद भाजपा की वर्तमान में 18 वर्ष से राज्य में और 9 वर्ष से केंद्र में सरकार अब तक हमें माझी जनजाति का आरक्षण नहीं दे रही और हमारे वंशानुगत रोजगार के माध्यम धीरे धीरे खत्म किये जा रहे हैं, बड़े बड़े जलाशयों व बांधों में मत्स्याखेट के ठेके पूंजीपतियों के हवाले किये जा रहे हैं, तो आखिर हमारे लोग जो भाजपा के अनेक संगठनों में सहभागिता और सक्रियता निभा रहे हैं आखिर उनकी जिम्मेदारी क्या है ? इस पर हमें 2023 विधानसभा चुनाव के पहले सत्यता से और गंभीरता से विचार कर समझना पड़ेगा तब कहीं जाकर हम अपने संवैधानिक हक और अधिकार सहित अपने वंशानुगत रोजगार के जो साधन है उनको लेकर आने वाले समय में पूरी एकजुटता के साथ अपनी बात राजनीतिक दलों के लोगों से सजगता से कह सकते हैं । इसी संदर्भ को लेकर मध्यप्रदेश सरकारों द्वारा निकाले गये आदेशों व चुनावी घोषणा पत्रों में उल्लेख किये गये विषयों सहित माझी मछुआ पंचायत में की गई घोषणाओं व आदेशों को ” माझी आरक्षण और वादाखिलाफी “शीर्षक से प्रकाशित की जा रही पत्रिका के माध्यम से आज तक राजनीतिक दलों द्वारा माझी समाज के साथ की वादाखिलाफी की सच्चाई सामने रखी जायेगी ।