जिला पंचायत सीईओ श्री गेमावत ने जारी किया आदेश
कटनी
। जल संसाधनों का समुचित उपयोग कर मछली पालन एवं सिंघाड़े की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से तीन ग्राम पंचायतों के 6 तालाबों को 10 वर्षीय पट्टे पर देने का आदेश जिला पंचायत के सीईओ श्री शिशिर गेमावत ने जारी किया है। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएं और स्थानीय स्तर पर जल संसाधनों का सतत एवं लाभकारी उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
मत्स्य पालन पट्टे का आवंटन
ग्राम पंचायत बिजौरी, विकासखंड बड़वारा, ग्राम सभा के अनुसार, खेरदाई तालाब (खसरा नंबर 288) को दस वर्षों के लिए श्री समीर कुमार केवट (पिता श्री गेंदलाल केवट, ग्राम कोड़ों) को मत्स्य पालन हेतु पट्टे पर दिया गया है।
ग्राम पंचायत डांग, विकासखंड रीठी
ग्राम सभा के अनुसार, गंगा सागर तालाब (खसरा क्रमांक 803) को दस वर्षीय मत्स्य पालन एवं सिंघाड़े की खेती हेतु श्री तुलसीराम ढीमर (पिता श्री गज्जी, ग्राम डांग) को पट्टे पर दिया गया है।
तालाब का उत्पादित जलक्षेत्र 1.01 हेक्टेयर है और वार्षिक पट्टा राशि505 रूपए है।
ग्राम पंचायत कुसमा, विकासखंड विजयराघवगढ़
ग्राम सभा के अनुसार, ग्राम पंचायत कुसमा के अंतर्गत 4 तालाबों को दस वर्षीय मत्स्य पालन एवं सिंघाड़े की खेती हेतु पट्टे पर देने की अनुमति सीईओ श्री गेमावत ने प्रदान की है। इनमें
गरगटा तालाब (खसरा क्रमांक 519)
उत्पादित जलक्षेत्र: 2.50 हेक्टेयर और वार्षिक पट्टा राशि 1250 रुपए है तथा जसो तालाब (खसरा क्रमांक 804)
उत्पादित जलक्षेत्र 1.89 हेक्टेयर और वार्षिक पट्टा राशि 945 रुपए है एवं बड़ा तालाब (खसरा क्रमांक 113)
उत्पादित जलक्षेत्र 3.01 हेक्टेयर और वार्षिक पट्टा राशि 1505 रूपए है। इसके अलावा छोटा तालाब (खसरा क्रमांक 82)
उत्पादित जलक्षेत्र 1.30 हेक्टेयर और वार्षिक पट्टा राशि 650 रूपए है।इन सभी तालाबों को दस वर्षीय पट्टे पर दिया गया है।
जल संसाधनों का समुचित उपयोग
ग्राम पंचायतों के अधीन तालाबों का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग किया जाएगा ताकि जल संसाधनों का सतत विकास हो। मत्स्य पालन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, जिससे किसानों और मजदूरों की आय में वृद्धि होगी। मत्स्य पालन से प्रोटीन युक्त आहार की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे कुपोषण की समस्या कम होगी। सिंघाड़े की खेती भी जलाशयों में की जाएगी, जिससे किसानों की आय के अतिरिक्त स्रोत विकसित होंगे।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
गांवों में मत्स्य पालन और सिंघाड़े की खेती के चलते स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा। इससे वे आत्मनिर्भर बनेंगे और गांवों से शहरों की ओर पलायन कम होगा। मत्स्य पालन पट्टे से सरकारी खजाने में राजस्व वृद्धि होगी, जिसे अन्य विकास योजनाओं में लगाया जा सकता है। मत्स्य पालन से तालाबों का संरक्षण होगा, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार आएगा। मत्स्य पालन के बढ़ने से मछली उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सस्ते और पोषक आहार की उपलब्धता बढ़ेगी।