संत श्री आशारामजी बापू ने वर्ष 2007 में 14 फरवरी के दिन मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की शुरुआत की
राजधानी भोपाल से मोइन खान की रिपोर्ट
भारतीय संस्कृति में माता-पिता को देवतुल्य स्थान दिया गया है। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से बच्चों को बचाने के लिए एवं अपने माता-पिता के प्रति आदर भाव प्रकट करने हेतु लोकहितकारी पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने वर्ष 2007 में 14 फरवरी के दिन मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की शुरुआत की।
अब यह दिवस विश्वव्यापी हो चुका है। इसे अनेक धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों एवं संस्थाओं द्वारा स्कूल, कालेज, आश्रम, मंदिर, कालोनी आदि अनेक स्थानों पर व्यापक रूप से मनाया जा रहा है। इस कार्यक्रम को देखने वाले प्रत्येक व्यक्ति भाव-विभोर हो जाते है एवं इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते है। संत आशाराम बापू के साधको द्वारा मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम 14 फरवरी से 1 माह पूर्व ही प्रारंभ कर दिया जाता है जिसे अनेक स्कूलों एवं कालोनियों में आयोजित किया जाता है। 14 फरवरी को बापू के प्रत्येक आश्रम में या किसी सार्वजनिक स्थानों पर समितियों द्वारा मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाता है। भोपाल आश्रम में 14 फरवरी को शाम 4 बजे से गुरुकुल परिसर में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
मातृ-पितृ पूजन दिवस का समाज में प्रचार करने हेतु अनेक स्थानों पर संकीर्तन यात्रा निकाली जाती है। भोपाल में 12 फरवरी रविवार को 12 बजे आश्रम से एक विशाल वाहन रैली निकाली गई। रैली में करीब 100 बाइक, लगभग 50 कारे एवं अन्य अनेक वाहन सजे हुए थे। 1 किमी लंबी रैली को देखकर कई लोग बापूजी की जयजयकार कर रहे थे। 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का संदेश देने वाली यह रैली आशाराम बापू के गांधीनगर आश्रम से करोंद, भानपुर, अयोध्या बायपास, रत्नागिरी तिराहा, पिपलानी, अप्सरा टाकीज, प्रभात चौराहा, बोगदा पुल, भारत टाकीज, अल्पना तिराहा, नादरा बस स्टैंड, हमीदिया, लालघाटी होते हुए 35 किमी की दूरी तय करते हुए आश्रम में ही रैली का समापन हुआ।