सपा ने पिटे हुए मोहरे को फिर दिया प्रदेश की कमान
लौटनराम निषाद
लखनऊ,28 सितम्बर।
समाजवादी पार्टी 2017 से लगातार हार का सामना करती आ रही है।उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पार्टी के अनुत्तम ही साबित हुए हैं।जब चाचा-भतीजा में पारिवारिक विवाद खड़ा हुआ तो राष्ट्रीय अध्यक्ष व तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से उतार कर नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया।लेकिन जब से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी उत्तम को मिली है,पार्टी को हार दर हार का ही सामना करना पड़ा है।ये पार्टी के लिए शुभ साबित नहीं हुए हैं।इन्हें हटाकर किसी दूसरे को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने की माँग लगातार उठती रही है।कारण कि नरेश उत्तम कार्यकर्ताओं पर कोई खास असर नहीं छोड़ पाते।इनके अंदर ऊर्जा भरने की भी कोई खासियत नहीं है।यही नहीं,ये जिस कुर्मी जाति से आते हैं,उस पर भी ये बिल्कुल कोई असर नहीं छोड़ पाते।इस बार पूरी सम्भावना थी कि प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी दूसरे को दी जाएगी।आज जैसे ही इनके फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा हुई,कार्यकर्ताओं में निराशा के भाव देखने को मिले।जगह जगह कार्यकर्ताओं में टिप्पणी करते सुना गया कि 2024 के भी हार की तैयारी कर ली गयी है।सम्भासन थी कि कैडर बेस के नेता स्वामी प्रसाद मौर्या या रामअचल राजभर को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाए।कार्यकर्ता धर्मेन्द्र यादव को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने की माँग उठाते रहे हैं।लेकिन चाचा के साथ गठित घटनाक्रम से अखिलेश यादव परिवार के किसी दूसरे को बढ़ाना नहीं चाहते।वैसे अखिलेश यादव को जी-हजुरीकिस्म के लोग ही पसंद हैं।ये नहीं चाहते कि पिछड़े वर्ग का कोई मुखर नेता सपा में उभरे।यही कारण था कि जब लौटनराम निषाद समाजवादी पार्टी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष बनाये गए तो पार्टी को पहली बार कोई वैचारिक व हाजिरजवाब नेता आगे आया था।अपनी मजबूत वैचारिकी व क्रियाशीलता से थोड़े ही दिन में पूरे प्रदेश में प्रभाव छोड़ दिये।उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की मांग उठने लगी थी।अखिलेश यादव ने उन्हें जल्द ही हटाकर लौटनराम निषाद की ही बिरादरी के राजपाल कश्यप को अध्यक्ष बनाया दिए, लेकिन ये कार्यकर्ताओं पर वह प्रभाव नहीं छोड़ पाए,जो प्रभाव लौटनराम निषाद ने छोड़ा था।
2014 से अब तक लगातार चुनाव जीतने के बाद भी 5 अध्यक्ष बना चुकी है,जिसमे 2 ब्राह्मण और 3 पिछड़े वर्ग के नाम शामिल हैं। डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के बाद डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय को अध्यक्ष बनाया गया।इसके बाद केशव प्रसाद मौर्य(कोयरी),स्वतंत्र देव सिंह(कुर्मी) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।अभी पिछले महीने जाट बिरादरी के चौ.भूपेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में बीजेपी ने जातिगत समीकरण का खास ध्यान रखा है. योगी की नई टीम में 21 सवर्ण मंत्रियों को शामिल किया गया है. कैबिनेट में 9 दलित मंत्री बने हैं, जिसमें कैबिनेट में बेबीरानी मौर्य को ही जगह मिली है.
योगी कैबिनेट में 20 ओबीसी मंत्री
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 20 ओबीसी मंत्री बनाए गए हैं, जिनमें बीजेपी के सहयोगी अपना दल और निषाद पार्टी से एक-एक कैबिनेट मंत्री शामिल हैं. बीजेपी के ओबीसी चेहरे केशव प्रसाद मौर्य को अपनी सीट हारने के बाद भी डिप्टी सीएम बनाया गया है. इसके अलावा 8 ओबीसी कैबिनेट मंत्री बने हैं, जिनमें कुर्मी समाज से स्वतंत्र देव सिंह, राकेश सचान और अपना दल कोटे से आशीष पटेल को जगह मिली है. जाट समुदाय से लक्ष्मी नारायण चौधरी और भूपेंद्र सिंह चौधरी कैबिनेट मंत्री बने हैं. इसके अलावा राजभर समाज से अनिल राजभर, निषाद समुदाय से संजय निषाद और लोध समुदाय से धर्मपाल सिंह मंत्री ब
स्वतंत्र प्रभार और राज्यमंत्री
योगी सरकार में ओबीसी समुदाय से पांच स्वतंत्र राज्यमंत्री बने हैं, जिनमें लोध समुदाय से संदीप सिंह,
योगी कैबिनेट में 20 ओबीसी मंत्री
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 20 ओबीसी मंत्री बनाए गए हैं, जिनमें बीजेपी के सहयोगी अपना दल और निषाद पार्टी से एक-एक कैबिनेट मंत्री शामिल हैं. बीजेपी के ओबीसी चेहरे केशव प्रसाद मौर्य को अपनी सीट हारने के बाद भी डिप्टी सीएम बनाया गया है. इसके अलावा 8 ओबीसी कैबिनेट मंत्री बने हैं, जिनमें कुर्मी समाज से स्वतंत्र देव सिंह, राकेश सचान और अपना दल कोटे से आशीष पटेल को जगह मिली है. जाट समुदाय से लक्ष्मी नारायण चौधरी और भूपेंद्र सिंह चौधरी कैबिनेट मंत्री बने हैं. इसके अलावा राजभर समाज से अनिल राजभर, निषाद समुदाय से संजय निषाद और लोध समुदाय से धर्मपाल सिंह मंत्री ब
स्वतंत्र प्रभार और राज्यमंत्री
योगी सरकार में ओबीसी समुदाय से पांच स्वतंत्र राज्यमंत्री बने हैं, जिनमें लोध समुदाय से संदीप सिंह,
निषाद और लोध समुदाय से धर्मपाल सिंह मंत्री बने हैं.
स्वतंत्र प्रभार और राज्यमंत्री
योगी सरकार में ओबीसी समुदाय से पांच स्वतंत्र राज्यमंत्री बने हैं, जिनमें लोध समुदाय से संदीप सिंह, निषाद समाज से नरेंद्र कश्यप, यादव समुदाय से गिरीश चंद्र यादव, कुर्मी समुदाय से संजय गंगवार, प्रजापति जाति से धर्मवीर प्रजापति, कलवार समुदाय से रवींद्र जायसवाल मंत्री बने. वहीं, 6 राज्यमंत्री ओबीसी बने हैं, जिनमें गड़रिया समाज से आने वाले अजीत पाल, सैनी समुदाय से जसवंत सैनी, निषाद समाज से रामकेश निषाद, जाट समुदाय से केपी मलिक और तेली समुदाय से राकेश राठौर के जगह दी गई है.
योगी कैबिनेट में 9 दलित मंत्री
योगी सरकार के कैबिनेट में 9 दलित मंत्री बने हैं, जिसमें कैबिनेट के तौर पर महज बेबीरानी मौर्य को जगह मिली है. वे जाटव समुदाय से आती हैं और बीजेपी उन्हें बसपा प्रमुख मायावती के विकल्प के तौर पर आगे बढ़ा रही है. साथ ही जाटव समाज से ही आने वाले असीम अरुण को स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनाया गया है. इसके अलावा गुलाब देवी को भी एक बार फिर से मंत्री बनाया गया है. उन्होंने स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री के तौर पर शपथ ली है.
वहीं, राज्यमंत्री के तौर पर दिनेश खटिक को फिर से राज्यमंत्री बनाया गया है, उन्हें पिछले कार्यकाल में 2021 में मंत्री बनाया गया था. इसी तरह से संजी गौड़ को भी दोबारा से राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया है. इसके अलावा सुरेश राही और विजय लक्ष्मी गौतम को भी राज्यमंत्री बनाया गया तो
और दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व दिया है, उससे साफ है कि बीजेपी टीम योगी के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव को साधने की रणनीति पर बढ़ रही है.
– बीजेपी योगी कैबिनेट के जरिए दलित-ओबीसी वोटों को साथ में जोड़े रखना चाहती है तो बसपा के कोर वोटबैंक जाटव को सियासी संदेश देने के लिए बेबी रानी मौर्य को कैबिनेट और असीम अरुण को स्वंतत्र राज्यमंत्री बनाया है.
मुस्लिम-सिख- पंजाबी
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अल्पसंख्यक समुदाय से दो मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें मुस्लिम समुदाय से मोहसिन रजा की जगह दानिश आजाद अंसारी को राज्यमंत्री बनाया गया है तो सिख समुदाय से आने वाले बलदेव सिंह औलख एक बार फिर से राज्यमंत्री बने हैं, तो पंजाब समुदाय से आने वाले बीजेपी के दिग्गज नेता सुरेश खन्ना कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं. सुरेश खन्ना 9वीं बार शाहजहांपुर सीट से विधायक बने हैं.
– बीजेपी ने योगी सरकार के 2.0 कैबिनेट के जरिए सामाजिक समीकरण के साथ-साथ राजनीतिक संदेश देने की कवायद की है. बीजेपी ने जिस तरह से कैबिनेट में अपने कोर वोटबैंक के साथ-साथ ओबासा और दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व दिया है, उससे साफ है कि बीजेपी टीम योगी के जरिए 2024 के
इस तरह से बीजेपी की नजर मुस्लिम ओबीसी वोटबैंक पर है, जिसके चलते मोहसिन रजा की जगह दानिश आजाद को मंत्री बनाया गया ताकि मुस्लिम समुदाय के पसमांदा (ओबीसी) वोटबैंक को जोड़ा जा सके. इस तरह से बीजेपी ने तराई बेल्ट के रामपुर से आने वाले सिख समुदाय के बलदेव सिंह औलख को फिर से मंत्री बनाकर सिख वोटरों को सियासी संदेश दिया गया है.
पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय के बीच आरएलडी और किसान नेता राकेश टिकैट के सियासी प्रभाव की काट के लिए बीजेपी ने जाट समुदाय से तीन मंत्री बनाए हैं, जिनमें दो कैबिनेट और एक स्वतंत्र प्रभार हैं. वहीं मौर्य समुदाय से सिर्फ केशव मौर्य को भेजा गया है. पि कैबिनेट से तुलना की जाए तो इस बार उनकी भागीदारी कम ही रही है. पिछली बार तीन मंत्री सरकार में थे, जिनमें एक डिप्टी सीएम केशव ही प्रमुख
समुदाय से सिर्फ केशव मौर्य को भेजा गया है. पिछली कैबिनेट से तुलना की जाए तो इस बार उनकी भागीदारी कम ही रही है. पिछली बार तीन मंत्री सरकार में थे, जिनमें एक डिप्टी सीएम केशव ही प्रमुख / रूप से नुमाइंदगी कर रहे थे. वहीं कैबिनेट में इस बार गुर्जर समुदाय को जगह नहीं मिल सकी है.